मोहन! कब चलेगा दुष्कर्मियों पर आपका सुदर्शन….
जिनको यह तक नहीं मालूम कि बैड और गुड टच क्या होता है? जिन्हें इसका आभाष भी नहीं कि उन्हें प्यार-दुलार करने वाला वात्सल्य प्रेम की भावना रखता है या वासना का भूखा भेड़िया है? ऐसी 3, 5 और 7 साल की मासूम बच्चियां दरिंदों के दुष्कर्मों का शिकार हो रही हैं। ऐसे दुष्कृत्य एक, दो, तीन नहीं, लगातार बड़ी तादाद में हो रहे हैं। यह स्थिति तब है जब मप्र में मासूमों के साथ बलात्कार करने वालों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान है। भाजपा, कांग्रेस के नेता हों, पंडित प्रदीप मिश्रा जैसे धर्माचार्य या आम लोग सभी गुस्से में हैं और आरोपियों को तालिबानी तर्ज पर सरेआम फांसी पर लटकाने की मांग कर रहे हैं। हर जुबान पर एक ही सवाल है, ऐसा करने वाले दरिंदों के खिलाफ सरकार क्या कर रही है? इन दुष्कर्मियों पर मोहन का सुदर्शन चक्र क्यों नहीं चल रहा? दंड की ऐसी कोई व्यवस्था क्यों नहीं हो रही कि ऐसा कुकृत्य करने से पहले अपराधी की रूह कांपे? सरकारी और कानूनी तौर पर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को ही सख्त निर्णय लेना पड़ेगा। वे प्रदेश के गृह मंत्री भी हैं। ऐसे अपराधों से कानून व्यवस्था पर उंगलियां उठ रही हैं। दूसरी तरफ माताओं को किसी पर भरोसा करने की बजाय खुद बच्चियों का टीचर बनना पड़ेगा, क्योंकि बच्चियां न स्कूल में टीचर से सुरक्षित हैं और न ही मोहल्ले में पड़ोसियों से, भोपाल में 3 और 5 साल की बच्चियों के साथ दुष्कर्म इसके उदाहरण हैं।
लीजिए, फिर जिंदा हो गया व्यापम घोटाले का जिन्न….
पूर्व विधायक पारस सकलेचा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नोटिस जारी करने और परिवहन विभाग में की गई 45 भर्तियां रद्द होने के बाद प्रदेश के बहुचर्चित व्यापम घोटाले का जिन्न फिर जिंदा गया है। व्यापम घोटाले की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने वाले पारस सकलेचा ने उम्मीद जताई कि आने वाले समय में बड़े मगरमच्छों के खिलाफ भी कार्रवाई होगी। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव ने कहा कि अब साफ हो गया है कि व्यापम घोटाले की न सीबीआई ने सही जांच कर कार्रवाई की, न ही एसटीएफ ने। बाद में घोटाले की जांच करने वाले सीबीआई अफसर तक भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गए हैं। इसलिए भी जांच संदेह के घेरे में है और रिपोर्ट भी सार्वजनिक नहीं की गई। जांच के दौरान प्रकरण से जुड़े 25 से 40 लोगों की अप्राकृतिक मौत हो गई। हिरासत और सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतों को जोड़ दें तो आंकड़ा सौ तक पहुंच जाता है। खास बात यह है कि व्यापम घोटालें के आरोपियों को लगातार सजाएं हो रही हैं लेकिन इनमें से एक भी बड़ा राजनेता अथवा अफसर शामिल नहीं है, जबकि आरोप सभी पर थे। अब मांग हो रही है कि हाईकोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट जज की निगरानी में घोटाले और इससे जुड़े लोगों की मौत की जांच हो। कांग्रेस इसे लेकर आक्रामक है और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से इस्तीफे की मांग करने लगी है।
यह कैसी फजीहत करा बैठे ‘बुंदेलखंड के गांधी’….
बुंदेलखंड के लोग जिस राजनेता की शालीनता और सज्जनता के कायल थे। जो जब से चुनावी राजनीति में उतरे तब से एक भी चुनाव नहीं हारे। ये पहले सागर और इसके बाद टीकमगढ़ लोकसभा सीट से 4-4 चुनाव जीत चुके हैं। वर्तमान में ये केंद्रीय मंत्री हैं और समर्थक इन्हें ‘बुंदेलखंड का गांधी’ कहते हैं। पहली बार खुद इन्होंने अपनी बुरी फजीहत करा ली। हम बात कर रहे हैं भाजपा के दलित चेहरे और केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार की। टीकमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में इन्होंने लगभग डेढ़ सौ सांसद प्रतिनिधि नियुक्त कर डाले।
हर काम में इनका हस्तक्षेप बढ़ा तो पहले पूर्व भाजपा विधायक मानवेंद्र सिंह ‘भंवर राजा’ ने इनके खिलाफ मोर्चा खोला। इसके बाद पूर्व मंत्री और छतरपुर से विधायक ललिता यादव मैदान में आईं, फिर टीकमगढ़ के पूर्व विधायक द्वय राकेश गिरि और राहुल लोधी ने बाकायदा पत्रकार वार्ता बुला कर वीरेंद्र पर आरोप जड़ दिए। आरोप है कि केंद्रीय मंत्री ने कांग्रेसियों और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को सांसद प्रतिनिधि बना दिया। वे काम में नाजायज हस्तक्षेप करते हैं। पहले वीरेंद्र ने आरोपों का जवाब आरोप लगाकर दिया। बाद में एक सांसद प्रतिनिधि के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई तो वे बैकफुट पर आ गए। शिकायत भोपाल से लेकर दिल्ली तक पहुंची। अंतत: उन्हें सभी सांसद प्रतिनिधियों की नियुक्तियां रद्द कर फजीहत कराना पड़ गईं।
इन दिग्गजों ने मुख्यमंत्री की भी नहीं की परवाह….
बुंदेलखंड में भाजपा के दो दिग्गज पार्टी से खफा हैं। नाराजगी इस कदर है कि ये मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की भी परवाह नहीं कर रहे हैं। सागर में संपन्न रीजनल इंडस्ट्रियल कांक्लेव में ऐसा नजारा देखने को मिला, जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी। मुख्यमंत्री डॉ यादव मंच पर मौजूद थे और पार्टी के दो दिग्गज गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह कार्यक्रम छोड़कर चले गए।
मुख्यमंत्री इनका नाम पुकारते रह गए। खास बात यह है कि गोपाल और भूपेंद्र कार्यक्रम में पहुंचे लेकिन मंच में उन्हें उनकी वरिष्ठता के अनुसार स्थान नहीं मिला। डॉ यादव एक दो बार इनका हाथ पकड़ कर दीप प्रज्जवलन और सम्मान कार्यक्रम में आगे लाए पर नाराजगी दूर नहीं हुई। गौर करने की बात यह है कि गोपाल और भूपेंद्र में छत्तीस का आंकड़ा रहा है लेकिन दोनों नेता एक कार में बैठकर गए। आगे गोपाल बैठे थे और पीछे की सीट पर भूपेंद्र। बाद में गोपाल ने एक्स पर एक पोस्ट डाली। पोते को स्कूल से लाने का उल्लेख करते हुए उन्होंने लिखा कि राजनीति और पद यदि आपको मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा देते है तो उससे कई गुना ज्यादा छीन भी लेते हैं। पहली बार उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। इससे पहले मुख्यमंत्री बीना दौरे पर गए थे तब भूपेंद्र सिंह कार्यक्रम में नहीं पहुंचे थे। वे भी मंत्री नहीं बन सके। गोपाल-भूपेंद्र का यह मिलन राजनीति में क्या गुल खिलाता है, यह देखने लायक होगा।
सांसद प्रतिनिधि बन कमल ने घटा लिया अपना कद….!
पांच बार विधायक रहे पूर्व मंत्री कमल पटेल जबसे सांसद प्रतिनिधि बने तब से सवालों के घेरे में हैं। इतने वरिष्ठ नेता की ऐसी नियुिक्त का संभवत: यह पहला उदाहरण है। इस पर पहले कांग्रेस ने हमला बोला तो जवाब केंद्रीय राज्य मंत्री दुर्गादास उइके और कमल पटेल दोनों ने दिया। उइके ने सांसद प्रतिनिधि के लिए कमल को सबसे उपयुक्त बताया।
कमल ने कहा कि पार्टी के साधारण कार्यकर्ता के नाते जो जवाबदारी मिली है, उसे निभाऊंगा। कांग्रेस नेताओं के पेट में दर्द क्यों हो रहा है? इस बीच भाजपा में खरी-खरी बोलने के लिए चर्चित भाजपा के वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा को भी कमल का सांसद प्रतिनिधि बनना पसंद नहीं आया। उन्होंने कहा कि कमल जैसे वरिष्ठ नेता के लिए यह पद शोभा नहीं देता। उन्होंने कहा कि सांसद और विधायक प्रतिनिधि क्षेत्र में सक्रिय किसी विश्वसनीय कार्यकर्ता को बनाया जाता है। यदि ऐसे वरिष्ठ नेता ही प्रतिनिध बनने लगे तो दरी उठाने वाले कार्यकर्ताओं का क्या होगा? उन्होंने कहा कि कमल का प्रतिनिधि बनना ऐसे कार्यकर्ताओं का हक मारना है। उन्हें अपनी वरिष्ठता का ख्याल रखते हुए यह पद छोड़ देना चाहिए। इसके विपरीत कमल नगर पालिका की बैठकों तक में शामिल होकर अपना स्वागत करा रहे हैं। सवाल है कि कमल में सांसद प्रतिनिधि को लेकर इतनी बेताबी क्यों हैं? वे खुद अपना कद तो नहीं घटा रहे हैं?