पसंद केंद्र की हो या मुख्यमंत्री की, नहीं पड़ेगा फर्क

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Whether the choice is of the Centre or the Chief Minister, it will not matter.

दिनेश निगम ‘त्यागी’
दिनेश निगम ‘त्यागी’

राज-काज
प्रदेश के मुख्य सचिव पद पर अनुराग जैन ने कार्यभार ग्रहण कर काम शुरू कर दिया है लेकिन उनकी नियुक्ति को लेकर अटकलों का बाजार अब तक गर्म है। उसकी वजह भी है। इस पद के लिए 30 सितंबर की दोपहर तक राजेश राजौरा को मुख्यमंत्री की पसंद बताया जा रहा था। खबरें आ रही थीं कि उनका नाम तय हो गया है और शाम तक आदेश आ जाएगा। राजौरा को बधाईयां मिलने लगी थीं। इस बीच अनुराग जैन का नाम चलने लगा। कहते हैं कि रात 12 बजे केंद्र से फोन आया, इसके बाद अनुराग जैन के नाम का आदेश जारी हो गया। हालांकि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का कहना है कि दिल्ली में अनुराग जैन से मुलाकात में उनका विजन जान कर मैने पहले ही मुख्य सचिव के लिए उनके नाम का फैसला लिया था। दूसरी तरफ अटकलें हैं कि केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य पर अपनी पसंद का मुख्य सचिव थोपा है। अनुराग जैन पीएमओ में रहे भी हैं। कहा जा रहा है कि अनुराग के जरिए केंद्र प्रदेश के हर काम पर पैनी नजर रखेगा। यह सच हो तब भी प्रदेश के कामकाज में कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि मुख्यमंत्री डॉ यादव भी केंद्रीय नेतृत्व की पसंद हैं। वे खुद हर काम नेतृत्व को भरोसे में लेकर करते हैं। इसलिए मुख्य सचिव अनुराग जैन मुख्य मंत्री की पसंद हो या केंद्र की, कोई फर्क नहीं पड़ेगा। दोनों के बीच अच्छी पटरी बैठेगी। अनुराग अनुभवी और अच्छे अफसर हैं ही।

‘अनुराग’ के प्रति कांग्रेस का ‘अनुराग’ शुभ संकेत….

भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों में से कोई कितना भी अच्छा काम क्यों न करे, लेकिन करते एक दूसरे का विरोध ही हैं। सत्तापक्ष के अच्छे काम की तारीफ विपक्ष भी करे, ऐसे दिन अब लद चुके। हालात ये है कि राजनीति में पक्ष-विपक्ष के नेताओं के बीच अब सामान्य शिष्टाचार भी देखने को नहीं मिलता। एक दूसरे के खिलाफ बहुत निचले स्तर तक जाकर बयानबाजी कर जाती है और व्यवहार राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की बजाय दुश्मनों जैसा। ऐसी राजनीति के बीच नए मुख्य सचिव अनुराग जैन की आमद के साथ आशा की नई किरण दिखाई पड़ी है। कांग्रेस ने भी उनके प्रति ‘अनुराग’ दिखाया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने उन्हें बधाई देते हुए अपेक्षा की है कि उनके अनुभव का लाभ प्रदेश को मिलेगा। एक अन्य नेता अमिताभ अग्निहोत्री ने कहा है कि अनुराग जैन जब भोपाल के कलेक्टर थे तब उन्होंने भोपाल रियासत के बड़े मर्जर भूमि घोटाले का निर्भीकता और ईमानदारी से पर्दाफांस किया था। साफ है कि ‘अनुराग’ को भाजपा के साथ्ा कांग्रेस का भी ‘अनुराग’ हासिल है। यह अनुराग बना रहा तो प्रदेश के विकास और लोगों की समस्याओं के निराकरण में चार चांद लग सकते हैं। यह अपेक्षा अतिशंयोक्तिपूर्ण हो सकती है लेकिन मुख्य सचिव अनुराग विकास के मुद्दे पर पक्ष-विपक्ष को साथ खड़ा करने में मील का पत्थर साबित हो सकते हैं।

वाह री भोपाल पुलिस, आपने तो कर दिया कमाल….!

हजारों अतिथि शिक्षक इस समय राज्य सरकार के गले की फांस बन गए हैं। एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार आश्वासन दे रहे हैं कि मैंने जो वादा किया था, उसे पूरा कराने के लिए पूरा ताकत लगाऊंगा। दूसरी तरफ मौजूदा सरकार अतिथि शिक्षकों के आंदोलन को कुचलने पर आमादा है। सबसे बड़ा कमाल भोपाल पुलिस ने किया। आंदोलनों के इतिहास की संभवत: यह पहली घटना होगी जब पुलिस ने अतिथि शिक्षकों के बीच एक बैनर लगा कर गोली चलाने की चेतावनी दी। बैनर में लिखा था कि ‘आपका मजमा गैरकानूनी करार दिया गया है। तितर-बितर हो जाइए वर्ना कारगर गोली चलाई जाएगी।’ जैसे ही बैनर वायरल हुआ, बवाल मच गया। पहले आंदोलनकारियों पर पुलिस लाठी चार्ज करती थी, फायरिंग करती थी लेकिन कभी बैनर लगा कर गोली चलाने की चेतावनी नहीं देती थी। लिहाजा, इसका जमकर विरोध हुआ। इसके बाद पुलिस ने बैनर हटा लिया। बाद में रात में पुलिस ने बिजली बंद कर तब अतिथि शिक्षकों पर लाठी चार्ज कर दिया, जब वे सुंदरकांड का पाठ कर रहे थे। इसमें कई शिक्षक घायल हो गए। अतिथि शिक्षकों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करा दी गई। साफ है कि सरकार शिवराज द्वारा किए गए वादे को किसी भी स्थिति में पूरा करने तैयार नहीं है। मंत्री का बयान और विभाग द्वारा जारी आदेश इसके उदाहरण हैं।

हिस्ट्रीशीटर तक बन गए सदस्य, कैसे होगी स्क्रूटनी….?

प्रदेश भाजपा ने बड़ा टारगेट पूरा करने के लिए बिना किसी की कुंडली खंगाले एक करोड़ से ज्यादा सदस्य तो बना लिए लेकिन यह सदस्यता पार्टी के लिए मुसीबत बन गई। ऐसा करने से आपराधिक प्रवृत्ति के लोग ही नहीं, कई हिस्ट्रीशीटर तक भाजपा के सदस्य बन गए। ऐसे सदस्य भी बने जो पहले से किसी अन्य दल के सदस्य थे। 18 साल से कम उम्र वाले नाबालिग सदस्य बना लिए गए। सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों को भी सदस्य बनाए जाने के मामले सामने आए हैं जबकि दलीय राजनीित में हिस्सा लेना उनके लिए वर्जित है। शिकायतों का अंबार लगा तब पार्टी ने निर्णय लिया कि नए सदस्यों की स्क्रूटनी की जाएगी। आपराधिक प्रवृत्ति वाले, दो दलों के सदस्य बने और नाबालिगों की सदस्यता रद्द की जाएगी। निर्णय तो ले लिया गया पर बड़ा सवाल है कि क्या यह कर पाना संभव होगा? एक करोड़ सदस्यों की स्क्रूटनी कैसे की जाएगी? इतने लोगों का आपराधिक रिकार्ड और कुंडली का मिलान कैसे किया जाएगा और कैसे अयोग्य लोगों की सदस्यता रद्द की जाएगी? वास्तविकता के धरातल पर संभव नहीं लगता। इसीलिए सदस्यता अभियान में सावधानी बरती जाना चाहिए थी। मिस्ड कॉल के जरिए सदस्य बनाने में यही होता है। अब कोई आपराधी वारदात करेगा तो पता चलेगा की वह भाजपा का सदस्य है। इससे पार्टी की छीछालेदर हो सकती है।

कांग्रेस-भाजपा के भंवर में फंसी ‘निर्मला’ की नाव….

कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन करने वाली बीना विधानसभा सीट की विधायक निर्मला सप्रे असमंजस में हैं। उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी छोड़ने का निर्णय लिया था, लेकिन अब तक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया। उनकी नाव कांग्रेस-भाजपा के भंवर में फंस कर रह गई है। विधानसभा सचिवालय ने पत्र लिख कर उनसे पूछा था कि आप स्पष्ट करें कि किस दल में हैं? कांग्रेस में हैं या भाजपा में? वे अब तक पत्र का जवाब नहीं दे पाईं। दरअसल, वे भाजपा में आ तो गईं लेकिन उन्हें हासिल कुछ नहीं हुआ। उन्हें आश्वासन मिला था कि बीना को जिला बना दिया जाएगा, लेकिन पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह के विरोध के चलते निर्णय अटक गया। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने अब परिसीमन आयोग का गठन कर दिया है, इसलिए निकट भविष्य में भी बीना के जिला बनने की संभावना नहीं है। उन्हें न मंत्रिमंडल में जगह मिली, न ही किसी निगम-मंडल में एडजस्ट किया गया। उनकी स्थिति ‘आधी छोंड़ पूरी को धावै, आधी मिले न पूरी पावै’ वाली हो गई है। उनके पास क्षेत्र के लोगों को बताने के लिए कुछ नहीं है। इस्तीफा देने पर उप चुनाव होगा, जिसमें जीत की गारंटी नहीं है। इसीलिए वह कुछ तय नहीं कर पा रहीं। उन्होंने कांग्रेस के कुछ नेताओं से भी संपर्क साध रखा है। उनके पास अभी कांग्रेस में रहने का भी विकल्प है।