राज-काज; कई मुद्दों पर अलग हैं मोहन-शिवराज के रास्ते….

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Politics; Mohan and Shivraj's paths are different
Politics; Mohan and Shivraj's paths are different

Politics; Mohan and Shivraj’s paths are different on many issues…

Politics; Mohan and Shivraj's

दिनेश निगम ‘त्यागी’
प्रदेश में डॉ मोहन यादव के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद 16 साल से ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान के फैसले एक-एक कर पलटे जा रहे हैं। कुछ मसलों पर शिवराज एक्सपोज भी हो रहे हैं। शिवराज भाजपा की सरकार के मुख्यमंत्री थे और डॉ मोहन यादव भी इसी दल की सरकार के मुखिया हैं। पर कई मुद्दों पर दोनों के रास्ते अलग दिखाई पड़ते हैं। सबसे पहले राजधानी परियोजना का लोक निर्माण विभाग में संविलयन का निर्णय बदला गया था। इसके बाद शिवराज द्वारा शुरू किए गए सीएम राईज स्कूलों का नाम बदल कर संदीपनी विद्यालय किया गया, यह कह कर कि सीएम राइज से अंग्रेजियत की याद आती है। अब डॉ यादव ने प्रदेश के लाखों अधिकारी-कर्मचारियों की दुखती रग पर हाथ रखा है। उन्होंने कहा है कि 9 साल से बंद पदोन्नतियां शुरू की जाएंगी। सरकार जल्दी इसका रास्ता निकालेगी। मई से पदोन्नतियां प्रारंभ हो जाएंगी। ये पदोन्नतियां शिवराज सरकार के समय बंद हुई थीं और अब तक लाखों अधिकारी-कर्मचारी बिना पदोन्नति सेवानिवृत्त हो चुके हैं। डॉ यादव की इस घोषणा से अधिकारी-कर्मचारी गद्गद् हैं। कुछ संगठन मुख्यमंत्री से मिलकर आभार भी व्यक्त कर आए हैं। उनके बीच चर्चा है कि यदि डॉ यादव रास्ता निकाल रहे हैं तो शिवराज भी ऐसा कर सकते थे, लेकिन उन्होंने इस ओर गंभीरता से ध्यान ही नहीं दिया।

मीनाक्षी के कारण बेवजह हो गई कांग्रेस की फजीहत….
कहावत है ‘सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठमलट्ठा’, कांग्रेस की वरिष्ठ नेता मीनाक्षी नटराजन ने कुछ इसी तर्ज पर पार्टी की फजीहत करा दी। मामला गौरव रघुवंशी को कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन के लिए एआईसीसी डेलीगेट नियुक्त करने से जुड़ा था। गौरव प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में प्रशासन के प्रभारी हैं और प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के खास। इस नाते किसी अन्य नेता के स्थान पर उन्हें सिर्फ अधिवेशन के लिए डेलीगेट नियुक्ति करने का प्रस्ताव जीतू ने केंद्रीय नेतृत्व के पास भेजा था। अनुमोदन तो नहीं मिला लेकिन मौखिक तौर पर कह दिया गया कि आप गौरव सहित सूची में शामिल नेताओं को अधिवेशन में शामिल होने के लिए बोल दें। एक डेलीगेट इंदौर के भी थे। उनके पास मैसेज पहुंचा तो उन्होंने कहा कि मैं कैसे मान लूं कि मैं डेलीगेट नियुक्त हो गया। उनके कहने पर नेतृत्व को भेजी प्रस्ताव की प्रति उन्हें भेज दी गई। उन्होंने उसे फेसबुक में पोस्ट कर दिया। यह प्रति मीनाक्षी नटराजन तक पहुंचाई गई तो वे आगबबूला हो गईं। उन्होंने एक्स पर अपनी प्रतिक्रिया में लिखा कि मुझे गौरव के नाम पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन उनका नाम नीमच से नहीं जाना चाहिए था। इसके लिए यहां के किसी नेता का चयन होना चाहिए था। मामला दिल्ली तक पहुंचा और मीनाक्षी से जवाब-तलब कर लिया गया। साफ है कि बेवजह हंगामा खड़ा किया गया। कांग्रेेस में ऐसा चाहे जब होता रहता है।

राजनीतक ‘अमानत’ संभालेंगी शिवराज की बहू….!
केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान की नई नवेली पत्नी अमानत सिंह चौहान परिवार की राजनीतिक ‘आमानत’ संभालेंगी, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। पर राजनीतिक हल्कों में इसे लेकर चर्चाओं का बाजार गरम है। कार्तिकेय की शादी को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ। अमानत के विवाह में लगी हाथों की मेंहदी छूटी भी नहीं और वे एक राजनीतिक मंच पर भाषण देते नजर आ गईं। अमानत सीहोर जिले के बुधनी विधानसभा क्षेत्र के भैरूंदा में भाजपा के स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुईं। मंच पर आकर उन्होंने भावुक होकर कहा कि ‘जिस प्रकार मेरे ससुर शिवराज सिंह ने प्रदेश और क्षेत्र की सेवा की है। मैं भी यहां की बेटी और बहू बन कर सेवा करूंगी।’ उन्होंने कहा कि ‘भैरूंदा की धरती पर उन्हें जो प्यार और सम्मान मिला है, उससे वे बेहद भावुक हो गई हैं और इसके कभी भुल नहीं पाएंगी।’ इसे अमानत की राजनीतिक पारी की शुरुआत माना जा रहा है। कयास लगाए जाने लगे हैं कि भविष्य में चौहान परिवार की राजनीतिक विरासत को वे आगे बढ़ा सकती हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि फिर शिवराज के बेटे कार्तिकेय क्या करेंगे? वे ही अब तक शिवराज के उत्तराधिकारी के तौर पर उभरे हैं। शिवराज ने बुधनी विधानसभा के उप चुनाव में उनके लिए टिकट भी मांगा था।

प्रहलाद जी, क्यों नहीं कर पाते गुस्से पर काबू….?
प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल प्रदेश की तीन लोकसभा क्षेत्रों दमोह, बालाघाट और छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ चुके हैं। उनकी गिनती गंभीर और पढ़े-लिखे नेताओं में होती है। वे केंद्र में मंत्री रहे हैं। बावजूद इसके वे अपने गुस्से पर काबू क्यों नहीं कर पाते, यह समझ से परे है। लोग उनका एक बयान अब तक नहीं भूले। उन्होंने एक कार्यक्रम में आवेदन देने वाले लोगों को भिखारियों की फौज कह दिया था। पटेल ने कहा था कि यह प्रवृत्ति बन गई है कि कोई स्वागत का गुलदस्ता देने या माला पहनाने आता है तो साथ में एक आवेदन थमा देता है। इस बयान पर खासा बवाल मचा था। भाजपा का कोई नेता भी उनके समर्थन में सामने नहीं आया था लेकिन उन्होंने माफी मांगने से इंकार कर दिया था। प्रहलाद अपने बयान पर कायम रहे थे। अब शिवपुरी के एक कार्यक्रम में वे अफसरों पर भड़क गए। वे जल गंगा संवर्धन अभियान में हिस्सा लेने पहुंचे थे। अचानक गुस्सा हो गए और अफसरों को फटकार लगाते हुए कह दिया कि ‘साले आप सब लोग नौटंकीबाज हो।’ वे कार्यक्रम छोड़कर भी चले गए। लोग समस्याएं लेकर आए थे, उनसे मुलाकात नहीं की। बाद में पता चला कि वे गर्मी में पौधारोपण कार्यक्रम देखकर नाराज हो गए। उन्होंने कहा कि पौधारोपण का सही समय जून के बाद का है। फिर भी राजनेता के नाते उन्हें गुस्से पर काबू रखना चाहिए।

सौरभ मामले में एक्सपोज हो गई लोकायुक्त पुलिस….!
लोकायुक्त पुलिस ने जब से परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा को गिरफ्तार किया, उसके पास से सोना, चांदी के साथ बड़ी तादाद में नकदी मिली, तब से ही पूरी कार्रवाई संदेह के दायरे में है। लोकायुक्त पुलिस पर आरोपियों को बचाने का आरोप लग रहा है। घोटाला बड़ा था कटघरे में दो पूर्व परिवहन मंत्री और विभाग के अफसर हैं। संभवत: इसीलिए पहले तो लोकायुक्त पुलिस सौरभ को गिरफ्तार नहीं कर सकी। उसने कोर्ट में जाकर खुद सरेंडर किया। सौरभ के सहयोगी के एक वाहन से 54 किग्रा सोना के साथ 11 करोड़ नगद मिले थे लेकिन लोकायुक्त पुलिस इसका भी पता नहीं लगा सकी। इसे आयकर विभाग के अमले ने जब्त किया था। हद ताे तब हो गई जब लोकायुक्त पुलिए समय पर चालान प्रस्तुत नहीं कर सकी। लिहाजा, सौरभ और सहयोगियों को कोर्ट से जमानत मिल गई। इसके बाद लोकायुक्त पुलिस एक्सपोज थी और उसकी खासी छीछालेदर हुई। भला हो ईडी का, जो जांच में शरीक हुई और समय पर चालान प्रस्तुत कर दिया। इसकी वजह से सौरभ और उसके दोनों सहयोगी जेल से बाहर नहीं आ सके। हालांकि अब भी आरोप लग रहे हैं कि चूंकि घोटाले की जांच की आंच बड़े मगरमच्छों को झुलसा रही है, इसलिए मामले को रफा-दफा कर दिया जाएगा। अब ईडी की निष्पक्षता कसौटी पर है।