Is Congress scared of Dhirendra Shastri or is there some other reason…!
दिनेश निगम ‘त्यागी’(राज-काज )
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान ‘बंटोगे तो कटोगे’ का प्रारंभ से विरोध करती आई कांग्रेस बागेश्वरधाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र शास्त्री का नाम आने पर बैकफुट पर आ गई है। भोपाल प्रवास के दौरान धीरेंद्र शास्त्री ने योगी आदित्यनाथ के इस बयान का समर्थन किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ का भी। हालांकि शास्त्री ने बयान का समर्थन करते वक्त विवाद से बचने की कोशिश भी की। उन्होंने कहा कि ‘भारतीय एक नहीं रहेंगे, बंटेंगे तो पाकिस्तान और चीन हमें काटेंगे।’ उन्होंने मुस्लिमों का उल्लेख नहीं किया जबकि सिंहस्थ और कुंभ में मुस्लिमों को प्रवेश न देने की बात पर वे कायम रहे। उन्होंने कहा कि हम मक्का-मदीना जाकर तो व्यापार नहीं करते। इसलिए ‘हमारे अंगने में तुम्हारा क्या काम है।’ यह भी कहा कि ‘यदि हिंदू मस्जिदों में प्रवेश करें तो उन्हें जूते मारो।’ इतनी तीखी भाषा सुनने के बावजूद प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष मुकेश नायक ने पार्टी के सभी प्रवक्ताओं को निर्देश जारी किया कि ‘बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री के संबंध में मप्र कांग्रेस कमेटी के सभी प्रवक्ता साथी किसी भी प्रकार की डिबेट, वाईट अथवा प्रतिक्रिया व्यक्त न करें।’ तो क्या कांग्रेस पंडित धीरेंद्र शास्त्री की लोकप्रियता से डर गई या वजह कुछ और है? इसके मायने तलाशे जा रहे हैं।
‘घर की रहीं न घाट की’, कहां बैठेंगी ये विधायक….?
लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के तीन विधायकों राम निवास रावत, कमलेश शाह और निर्मला सप्रे ने पार्टी छोड़ कर भाजपा का दामन थामा था। इनमें से दो राम निवास और कमलेश के ठौर ठिकाने तय हो चुके हैं। कमलेश ने कांग्रेस छोड़ने के साथ विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। सबसे पहले उनकी सीट अमरवाड़ा के लिए उप चुनाव हुआ और वे भाजपा से विधायक हैं। दूसरे, राम निवास ने मंत्री बनने के बाद विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था। उनकी सीट विजयपुर के लिए भी उप चुनाव हो गया, नतीजा आना बाकी है। तीसरी हैं बीना विधायक निर्मला सप्रे।
इनकी स्थिति ‘घर की रहीं न घाट की’ जैसी है। इन्हाेंने लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के सामने कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में जाने का एलान किया था। मुख्यमंत्री ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कराई थी। हैं ये भाजपा में ही, लेकिन खुद को भाजपा का कहने से डर रही हैं। प्रदेश भाजपा नेतृत्व ने इन पर मीडिया से बात करने पर प्रतिबंध लगा रखा है। दूसरी तरफ विधानसभा को इन्होंने जवाब दिया है कि उन्होंने कांग्रेस छोड़ी ही नहीं। विधानसभा का शीतकालीन सत्र आयोजित होना है। सदन के रिकार्ड में ये कांग्रेस विधायक हैं लेकिन पार्टी इन्हें अपना नहीं मानती। इन्हें भाजपा के साथ भी नहीं बैठाया जा सकता। लिहाजा, निर्दलियों की तरह इन्हें अलग स्थान देने की तैयारी है। यह है राजनीति का चरित्र और नैतिकता!
जीतू की एक और परीक्षा के रिजल्ट का इंतजार….
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ के विधानसभा चुनाव में फेल होने के बाद प्रदेश में पार्टी की कमान युवा नेता जीतू पटवारी को सौंपी गई थी। पटवारी विधानसभा का चुनाव हारे थे, बावजूद इसके कांग्रेस नेतृत्व ने उन पर भरोसा किया।
इसकी वजह उनका राहुल गांधी कैम्प से होना भी था। प्रदेश कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद पटवारी के सामने पहली परीक्षा थी लोकसभा चुनाव की। इसमें वे बुरी तरह फेल हुए। इतिहास में पहली बार कांग्रेस को लोकसभा की एक भी सीट नहीं मिली। उनकी दूसरी परीक्षा हुई छिंदवाड़ा जिले की अमरवाड़ा विधानसभा सीट के उप चुनाव में। इसमें भी कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा। चूंकि सीट छिंदवाड़ा जिले की थी, इसलिए इसे जीतू से ज्यादा कमलनाथ की पराजय माना गया। पटवारी के सामने तीसरी परीक्षा भी जल्द आ गई। ये श्योपुर जिले की विजयपुर और सीहोर जिले की बुदनी विधानसभा सीट के लिए उप चुनाव हैं। पटवारी यह परीक्षा दे चुके हैं, बस रिजल्ट का इंतजार है। दोनों सीटों के उप चुनाव में जीतू पटवारी ही मुख्य भूमिका में थे। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के दौरे औपचारिकता के तौर पर हुए। विजयपुर और बुदनी उप चुनाव के नतीजे तय करेंगे कि कांग्रेस को संजीवनी मिलती है या एक और पराजय। पराजय निश्चिततौर पर पटवारी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ेगी।
दो दिन बाद ज्यादा सार्थक हो सकती थी बैठक….!
विजयपुर और बुदनी विधानसभा सीटों के लिए हुए उप चुनाव के नतीजे 23 नवंबर को आना है और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी अपनी नवगठित कार्यकारिणी की बैठक 21 और 22 नवंबर को बुला ली है। यदि यह बैठक दो दिन बाद 24 और 25 नवंबर को होती तो शायद ज्यादा सार्थक होती। लगे हाथ नतीजे आने पर उप चुनावों की समीक्षा भी हो जाती। रिजल्ट आने के बाद खुद जीतू ही कहेंगे कि हम उप चुनाव में आए नतीजों की जल्द समीक्षा करेंगे। पटवारी अपनी कार्यकारिणी का गठन अध्यक्ष बनने के लगभग 10 माह बाद कर सके हैं। टीम गठित हुई है तो उसकी पहली बैठक भी होगी, यह तय था। लेकिन उप चुनाव के नतीजों का इंतजार किए बगैर अर्थात नतीजा आने से सिर्फ एक दिन पहले ही बैठक को बुला लेना किसी के गले नहीं उतरा। यह सच है कि कार्यकारिणी गठित होने के बाद पार्टी के अंदर से विरोध के स्वर उभरे हैं। अजय सिंह और लक्ष्मण सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है और कार्यकारिणी के गठन के तरीके पर सवाल उठाए हैं। पार्टी का बड़ा तबका नाराज है। ऐसे में यदि उप चुनाव में कांग्रेस हारती है तो विरोध के स्वर और तीखे हो सकते थे। संभवत: इससे बचने के लिए ही रिजल्ट आने से पहले बैठक बुला ली गई। पर सवाल है कि क्या इससे विरोध के स्वर दबाए जा सकेंगे?
जवाबदारी मिली नहीं और देना पड़ गई सफाई….
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ अपने राजनीतिक जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। कहा यह भी जा रहा है कि लंबे समय तक शिखर पर रहने के बाद अब उनका राजनीतिक जीवन अस्त की ओर है।
कांग्रेस में उनकी सबसे बड़ी पूंजी गांधी परिवार का भरोसा था। यह खत्म होता दिख रहा है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मुलाकात के बाद भी वे उनका भरोसा जीत नहीं पाए। पहले विधानसभा चुनाव में पार्टी, इसके बाद लोकसभा चुनाव में बेटे नकुलनाथ की पराजय के बाद वे गांधी परिवार से दो- तीन बार मिल चुके हैं। हर बार कहा गया कि कमलनाथ केंद्र की राजनीति में जा रहे हैं और उन्हें नई जवाबदारी मिलने वाली है। कोई जवाबदारी तो मिली नहीं, अलबत्ता एक न्यूज चैनल ने फिर उनके भाजपा में जाने को लेकर खबर चला दी। कमलनाथ को सफाई देना पड़ गई। उन्होंने खबर को बेबुनियाद बताया और संबंधित चैनल, रिपोर्टर से माफी की मांग भी की। संभव है इसकी वजह से ही दिल्ली में उनका राजनीतिक पुनर्वास रुक गया हो, जबकि गांधी से परिवार से मिलने के बाद कमलनाथ के पार्टी कोषाध्यक्ष, कांग्रेस के राष्ट्रीय महामंत्री बनने की अटकलें चल रही थीं। पहले जम्मू कश्मीर और हरियाणा, इसके बाद महाराष्ट्र, झारखंड चुनाव में जवाबदारी मिलने की बात की जा रही थी। लेकिन फिलहाल कमलनाथ के खाते में इंतजार के सिवाय कुछ नहीं है।