‘ओटीपी पापा’…पिताओं की नई जमात !!

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OTP Papa’…a new breed of fathers!!
OTP Papa’…a new breed of fathers!!

‘OTP Papa’…a new breed of fathers!!

संजीव शर्मा (लेखक आकाशवाणी भोपाल में समाचार संपादक हैं )

ओटीपी पापा…जी हां, क्या आप भी ओटीपी पापा हैं!! यह पढ़कर आप भी चौंक गए न। आज जब सोशल मीडिया पापा, पॉप्स, बाबूजी, दादा, अब्बा, पापाजी, बाबा और डैड जैसे-जैसे तमाम संबोधन के जरिए पिताओं के योगदान को सराह रहा है, उनका गुणगान कर रहा है और उनसे मिली शिक्षाओं का बढ़ चढ़कर बयान कर रहा है तब ‘ओटीपी पापा’ कहना चौंकाता है और चौंकना भी चाहिए क्योंकि अब तक आपने भी पिताजी के लिए यह संबोधन नहीं सुना होगा।

 कुछ साल पहले की बात है जब दिल्ली में अक्सर ‘संडे पापा’ को लेकर चर्चा होती थी । दरअसल दिल्ली में नौकरी करने वाले बहुत सारे हमारे साथी ऐसे थे जो मेरठ, अलीगढ़ और इसी तरह दिल्ली के आसपास के शहरों से अप-डाउन करते थे । उस समय न तो आवागमन के इतने ज्यादा साधन थे और न ही आज की तरह तेज रफ्तार गाड़ियां। इसलिए, उन्हें सुबह नौ-साढ़े नौ बजे का ऑफिस मिलाने के लिए घर से बहुत जल्दी निकलना पड़ता था और तब बच्चे सोते रहते थे। इसीतरह शाम को 6 बजे तक की ड्यूटी करने के बाद दोस्तों के चाय पानी करते हुए वे देर रात की ट्रेन से घर पहुंच पाते थे । ऐसी स्थिति में उनके छोटे बच्चे सो जाते थे। ऐसी सूरत में बच्चों की संडे और छुट्टी के दिनों में ही अपने पिता से मुलाकात हो पाती थी इसलिए मजाक में ‘संडे पापा’ कहने का चलन शुरू हो गया क्योंकि पापा और बच्चों के बीच में मुलाकात संडे को ही हो पाती थी।

कुछ इस तरह का किस्सा ‘ओटीपी पापा’ का भी है। दरअसल आज के कैशलेस बाजार में नकद पैसे लेकर चलने का रिवाज लगभग खत्म हो गया है और पिता से लेकर बच्चों तक तमाम पेमेंट एप और ऑनलाइन भुगतान के तरीकों से खरीदारी या लेनदेन कर रहे हैं। अब बच्चों का खर्च पर काबू तो होता नहीं है इसलिए अक्सर मां-बाप या तो उनके पॉकेट मनी को सीमित कर देते हैं या फिर भुगतान के लिए उनके उनकी पेमेंट प्रक्रिया को अपने अकाउंट से जोड़ देते हैं । वैसे भी , बच्चन साहब (अमिताभ बच्चन) आए दिन भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से यही ज्ञान प्रतिदिन देते हैं।

 यह उचित भी है क्योंकि साइबर फ्रॉड अथवा ऑनलाइन ठगी से बचने के लिए बैंकों ने भी किसी भी लेनदेन के साथ ओटीपी अनिवार्य कर दिया है। अब, जब भी बच्चों को कुछ खरीदना या लेनदेन करना होता है तो वे अक्सर ओटीपी के लिए पापा पर आश्रित हो जाते हैं । बस, यहीं से ‘ओटीपी पापा’ की अवधारणा शुरू हुई। हम सब जानते हैं कि मोबाइल फोन और ईयर फोन/बड्स में रमी नई पीढ़ी के पास जब दोस्तों के साथ बैठकर बात करने का वक्त नहीं है तो वह मां-बाप के साथ कहां से समय निकाल पाएंगे इसलिए घरों में और खासतौर पर एकल परिवारों में परस्पर बातचीत का चलन कम होता जा रहा है। 

बच्चे मोबाइल में मैसेजिंग के जरिए तो बहुत सारी बात कर लेते हैं, सोशल मीडिया पर वह देश ही नहीं दुनिया भर के लोगों से संवाद करते हैं और उनके दोस्तों की संख्या भी हजारों में होती है…लेकिन असल जिंदगी में साथ बैठकर गपियाने के लिए न उनके पास वक्त होता है, न दोस्त और न ही रिश्तेदार। इसलिए, जब भी उन्हें किसी चीज की जरूरत होती है तो वह ऑनलाइन ऑर्डर करते हैं और फिर मां-बाप के पास ओटीपी के लिए फोन या संदेश आ जाता है। एक तरह से अब यह ओटीपी ही उनके बीच परस्पर संवाद का कारण बन गए हैं और इसी के चलते पापा, बाबूजी, पापा जी, बाबा और अब्बा की बजाय अब पापा ‘ओटीपी पापा’ हो गए हैं। 

तो इस फादर्स डे पर आप भी ओटीपी पापा बनकर न केवल बच्चों को खुश रखिए बल्कि अपने भी आधुनिक होने की खुशियां मनाइए। वैसे भी फादर्स डे कोई हमारा परंपरागत त्यौहार तो है नहीं बल्कि यह भारतीय संस्कृति से अलग किस्म का पर्व है। हमारी सनातन संस्कृति में तो पूरे 365 दिन माता-पिता के सम्मान को समर्पित हैं लेकिन फादर्स डे और इसी तरह के अन्य दिन हमें साल में एक दिन मां बाप के सम्मान का अवसर देते हैं । बाजार ने अपने मुनाफे के लिए इन एक दिन के पर्वों को दशहरा- दीवाली और ईद से बड़ा बना दिया है । 

फ़ादर्स डे नुमा दिनों का मतलब ग्रीटिंग कार्ड खरीदना, केक कटवाना और उपहार देकर किसी महंगे होटल में जाकर खा पी लेना, हो गया है।  यदि आपके पास पैसा है तो आप कपड़े, जूते और गहने में भी खर्च कर सकते हैं। हालांकि, मेरा मानना है कि  हम उत्सव धर्मी लोग हैं इसलिए किसी भी माध्यम से सही…आनंद मनाए। फिर चाहे वह फादर्स डे  हो,मदर्स डे या फिर होली-दीवाली…तो बस, ओटीपी पापा मौज करिए।