3, 13, 23 के आंकड़े में फिट नरेंद्र सिंह -सुबोध अग्निहोत्री

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_अमूमन लोग 3-13 के आंकड़े से बचते नजर आते हैं, प्रयास भी रहता है कि तीन-तेरह के चक्कर से बचे रहें, लेकिन भिण्ड विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह के साथ ऐसा संयोग बना है कि 3-13 तो क्या, उनकी राजनैतिक यात्रा में 23 और जुड़ गया। भिण्ड भाजपा के विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह वर्ष 2003 में, फिर सीधे दस साल बाद 2013 में और फिर दस साल के अंतराल से 2023 में भाजपा से विधायक चुने गए हैं। तीन का अंक इस लिहाज से उनके राजनैतिक जीवन का अहम अंक बन गया है।_

नरेंद्र सिंह की राजनैतिक यात्रा 1990 में तब प्रारंभ हुई जब उन्हें पहिली बार भाजपा का टिकिट मिला। यद्यपि वे यह चुनाव हार गए लेकिन तब से उनकी दावेदारी पक्की हो गई। इस चुनाव में कांग्रेस से चौधरी राकेश सिंह, जनता दल से डॉ. रामलखन सिंह और भाजपा से नरेंद्र सिंह चुनाव लड़े थे। तब चौ. राकेश सिंह विधायक बने और दूसरे नम्बर पर डॉ. रामलखन और तीसरे नम्बर पर नरेंद्र सिंह रहे। वोटों का अंतर भी कोई ज्यादा नहीं रहा। राकेश सिंह को लगभग 18 हजार, रामलखन को 16 हजार और नरेंद्र को 12 हजार के करीब वोट मिले। फिर 1993 चुनाव आया। इस चुनाव में राजनैतिक परिदृश्य ही बदल गया। डॉ. रामलखन सिंह भाजपा से लड़े और राकेश सिंह कांग्रेस से। इस चुनाव में डॉ. रामलखन सिंह चुनाव जीत कर पहिली बार विधानसभा की देहरी तक पहुंच गए। ठीक एक साल बाद ही लोक सभा के चुनाव हुये तो डॉ. रामलखन को भाजपा ने लोकसभा में उतार दिया, वे लोकसभा पहुंच गए । 1995 में रिक्त हुई सीट पर उप चुनाव हुआ तो भाजपा से वरिष्ठ पत्रकार रामभुवन सिंह को टिकिट मिल गया। कांग्रेस से चौ. राकेश सिंह और बसपा से रमाशंकर सिंह मैदान में आ गए। उप चुनाव में राकेश सिंह जीत गए।

वर्ष 1998 में भाजपा ने फिर नरेंद्र सिंह को मैदान में उतारा और कांग्रेस से राकेश सिंह खड़े हुये। यह चुनाव भी नरेंद्र सिंह लगभग ढाई हजार से हार गए। 2003 में हुए चुनाव में नरेंद्र सिंह भाजपा से और राकेश सिंह कांग्रेस से लड़े। इसमें नरेंद्र सिंह ने कांग्रेस के राकेश सिंह को लगभग 16 हजार मतों के अंतर से हराया और चुनाव जीत गए। योग-संयोग देखिये कि 1990 के ठीक 13 साल बाद 2003 में ही नरेंद्र सिंह विधायक बने। यानि तीन का अंक उन्हें यहीं से फलीभूत हुआ। वर्ष 2008 के चुनाव में नरेंद्र सिंह का टिकिट कट गया और भाजपा ने डॉ. रामलखन सिंह को टिकिट दे दिया। स चुनाव में नरेंद्र सिंह सपा से खड़े हो गए। नतीजतन कांग्रेस से राकेश सिंह विधायक चुने गये। 2003 के बाद सीधे 2013 में नरेंद्र सिंह को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया। सामने कांग्रेस से डॉ. राधेश्याम शर्मा और बसपा से संजीव सिंह थे। इस चुनाव में नरेंद्र सिंह को लगभग 52 हजार मत मिले और नरेंद्र सिंह दूसरी बार विधायक चुने गए।

2018 में फिर राजनैतिक घटनाक्रम ऐसा घटा कि हर बार कांग्रेस से चुनाव लड़ने वाले चौ. राकेश सिंह को भाजपा ने टिकिट दे दिया और कांग्रेस से डॉ. रमेश दुबे को टिकिट मिल गया तो संजीव सिंह बसपा से खड़े हो गए और नरेंद्र सिंह सपा से मैदान में कूद गए। इस चुनाव में संजीव सिंह को लगभग 69 हजार वोट मिले, जबकि भाजपा के राकेश सिंह को 33842 और सपा के नरेंद्र सिंह को लगभग 32 हजार वोट मिले। संजीव सिंह चुनाव जीत गए। 2013 के बाद वर्ष 2023 में नरेंद्र सिंह को जब भाजपा से टिकिट मिला तो संजीव सिंह फिर बसपा से खड़े हो गए और राकेश सिंह कांग्रेस से खड़े हो गये। इस चुनाव में नरेंद्र सिंह लगभग 14 हजार से ज्यादा वोटों से जीत गये।

भिण्ड विधानसभा का चुनाव ज्यादातर तीन परिवारों डॉ. रामलखन सिंह और उनके पुत्र संजीव सिंह, नरेंद्र सिंह और चौ. राकेश सिंह के बीच होता रहा है। इन्ही में से विधायक चुना जाता रहा है। नरेंद्र सिंह को तो तीन ,तेरह और तेईस का आंकड़ा ऐसा फलीभूत हुआ है कि इन्ही से ये विधानसभा तक पहुंच गए हैं। नरेंद्र सिंह भिण्ड में चौबीसों घंटे के नेता हैं। वे सुबह से लेकर रात तक अपनी विधानसभा के अलावा कहीं नहीं जाते। इसलिये वे लोकप्रिय भी हैं। राजनीति में वे जो कुछ भी हैं अपनी दम पर हैं जबकि संजीव सिंह के पिता और चौ. राकेश सिंह के पिता सक्रिय राजनीति में रहे हैं। यद्यपि भिण्ड में इन तीनों परिवारों का प्रभाव है और तीनों ही बारी बारी से इस विधानसभा का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।