नागर की स्थिति ‘लौट कर बुद्धू घर पर आए’ जैसी….सच मानिए, इस हालत के पात्र तो नहीं थे प्रभात जी….

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The situation is like nagar 'the fool has returned home'...
The situation is like nagar 'the fool has returned home'...

The situation is like nagar ‘the fool has returned home’…
Believe it, Prabhat ji did not deserve this situation.

वरिष्ठ पत्रकार दिनेश निगम ‘त्यागी’ का कॉलम राज – काज
सच मानिए, इस हालत के पात्र तो नहीं थे प्रभात जी….

The situation in the city is like 'the fool has returned home'.
The situation in the city is like ‘the fool has returned home’.

यह सच है कि दुनिया को अलविदा कहने वाले वरिष्ठ नेता प्रभात झा को भाजपा ने खूब दिया। वे मीडिया प्रभारी से लेकर राज्य सभा सदस्य, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तक रहे। पर अभी वे उम्र के उस पड़ाव पर नहीं थे कि उनसे बिछुड़ने के बारे में सोचा जा सके। लेकिन ऐसा हो गया। माफ करिए, इसके लिए सिर्फ नीयति को जवाबदार नहीं ठहराया जा सकता। भाजपा ने भी उनके साथ ठीक नहीं किया। उन्होंने भाजपा के साथ मीडिया का कदमताल तब कराया, जब मीडिया भाजपा से दूर रहता था। मीडिया प्रभारी रहते प्रभात जी जैसा संदर्भ मीडिया को उपलब्ध कराते थे, अब उसकी कल्पना भी संभव नहीं। प्रभात जी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तो उन्होंने पूरे प्रदेश को मथ डाला। बूथ स्तर तक प्रवास किए और कार्यकर्ताओं में जान फूंकी। नतीजा, विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। एक बैठक में दु:खी प्रभात के मुख से शब्द निकले, ‘उन पर पोखरण विस्फोट हो गया’। इसके बाद भाजपा ने प्रभात जी को पूरी तरह अलग-थलग कर दिया। अभी उनकी उम्र महज 67 साल थी लेकिन उनके पास कोई काम नहीं था। लगातार काम करने वाला सख्श यदि खाली बैठ जाए तो डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। शायद इसीलिए वे चारपाई से लगे तो उठ नहीं पाए। सच मानिए, पार्टी ने उम्र के इस पड़ाव में प्रभात जी के साथ जो किया, वे इसके पात्र कतई नहीं थे।

अटक कर रह गए सरकार के कई जरूरी काम….!

डॉ मोहन यादव के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बने सात माह से ज्यादा गुजर चुके हैं, लगता है काम-काज के लिहाज से सरकार अब तक फार्म में नहीं आ पाई। नतीजा, कई जरूरी काम जो काफी पहले हो जाना चािहए थे, अटके पड़े हैं। जिलों के काम-काज में प्रभारी मंत्री की मुख्य भूमिका होती है। 15 अगस्त नजदीक आ गया। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में प्रभारी मंत्री हिस्सा लेते हैं, लेकिन मंत्रियों को अब तक जिलों का प्रभार नहीं बांटा जा सका। इतना ही नहीं, मंत्रियों को अपना स्टाफ भी नहीं मिला। उन्हें अस्थाई स्टाफ से काम चलाना पड़ रहा है। उम्मीद की जा रही थी कि लोकसभा चुनाव बाद तबादलों से प्रतिबंध हटेगा लेकिन आधी बरसात गुजर जाने के बावजूद ऐसा नहीं हो सका। अधिकारी-कर्मचारी तबादलों के इंतजार में बैठे हैं। कई बार सूचना मिली की कलेक्टर, एसपी सहित आला अफसरों की तबादला सूची तैयार है, कभी भी निकलने वाली है लेकिन उसका समय नहीं आया। विडंबना यह भी है कि सूचना आयोग पूरी तरह खाली पड़ा है। एक भी आयुक्त नहीं है। नियुक्ति के लिए आवेदन बुलाए जा चुके हैं लेकिन निर्णय नहीं हो पा रहा है। यही स्थिति मंत्रिमंडल विस्तार की है। कांग्रेस से आए और उप चुनाव जीत चुके कमलेश शाह सहित कुछ वरिष्ठ विधायकों को मंत्रि बनाया जाना है, यह भी टल रहा है। अटके पड़े ऐसे कामों की फेहरिस्त लंबी है।

विरोधियों का रचा ‘चक्रव्यूह’ भेद पाएंगे भूपेंद्र….!

गांवों में एक दोहे की एक लाइन को हर कोई बोलता है, ‘पुरुष बली नहीं होत है, समय होत बलवान’। यह इन दिनो पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक भूपेंद्र सिंह पर फिट बैठती है। शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते भूपेंद्र का जलवा सबने देखा है। मंत्री रहते उनके पास परिवहन, नगरीय प्रशासन और गृह जैसे महत्वपूर्ण विभागों का दायित्व रहा है। शिवराज सिंह मुख्यमंत्री पद से हटे और भूपेंद्र को घेरने की कोशिशें शुरू हो गईं। बड़ा सवाल है कि अब जब वे पॉवर में नहीं है, तब विरोधियों द्वारा रचे चक्रव्यूह को भेद पाएंगे, या नहीं। खुरई क्षेत्र में उनके प्रतिद्वंद्वी रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अरुणोदय चौबे को भाजपा में लाया जा चुका है। बीना विधायक निर्मला सप्रे को लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा में इस शर्त पर लाया गया था कि बीना को जिला बनाया जाएगा। उन्होंने अब तक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है। निर्मला बीना को जिला बनाने की घोषणा होने का इंतजार कर रही हैं। खास यह है कि बीना की सीमा खुरई से लगी है और भूपेंद्र खुरई को जिला बनाने की घोषणा पहले ही करा चुके हैं। बीना जिला बना तो खुरई रह जाएगा। इसके अलावा नोनागिर हत्याकांड की सीबीआई जांच की मांग कर भी उन्हें घेरने की कोशिश हो रही है। मुसीबत से घिरे भूपेंद्र इस चक्रव्यूह से कैसे बाहर निकलते हैं, इस पर नजर है।

नागर की स्थिति ‘लौट कर बुद्धू घर पर आए’ जैसी….

मंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा करने वाले नागर सिंह चाैहान का जो हश्र संभावित था, वही हुआ। नए मंत्री राम निवास रावत को उनका वन एवं पर्यावरण विभाग दिए जाने से वे इतने नाराज हुए कि अपने साथ सांसद पत्नी का इस्तीफा दिलाने की भी घोषणा कर बैठे। इससे भाजपा नेतृत्व नाराज हो गया। उन्हें दिल्ली तलब किया गया और आंखे दिखाने वाले इस मंत्री को तत्काल अपनी हैसियत पता चल गई। उन्हें बता दिया गया कि आपको मंत्री रहना है या नहीं, तय कर लीजिए लेकिन वन एवं पर्यावरण विभाग आपको वापस नहीं मिलेगा। ‘लौट कर बुद्धू घर पर आए’ की तर्ज पर अंतत: दिल्ली से आकर रात में ही मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से मिले और ठंडे पड़ गए। नेतृत्व ने उनकी पत्नी अनीता को लोकसभा का टिकट दे दिया था, तो नागर मान लिया कि वे बहुत बड़े नेता हो गए और पार्टी के किसी भी निर्णय पर सवाल उठा सकते हैं। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि मैेने पत्नी के लिए टिकट मांगा ही नहीं था। पार्टी के पास विकल्प नहीं था, इसलिए उन्हें टिकट दिया और वे जीतीं भी। नागर सिंह भाजपा में लंबे समय से हैं, पर लगता है कि पार्टी को अच्छी तरह समझ नहीं पाए। यहां दूसरे दलों से टूट कर आए नेताओं को तो तवज्जो मिलती है लेकिन भाजपा के अंदर अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं किया जाता।

दो लाइन में पार्टी को आइना दिखा गए विश्नोई….

भाजपा में रघुनंदन शर्मा की तरह एक और वरिष्ठ नेता हैं अजय विश्नोई। ये रघुजी जैसा स्पष्ट और तीखा तो नहीं बोलते लेकिन खरी-खरी कहने के लिए जाने जाते हैं। खासियत यह भी है कि जो कह दिया उस पर अडिग रहते हैं। कभी यह नहीं कहते कि उनका कहने का मतलब यह नहीं था, उनकी बात को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया। मंत्री पद से इस्तीफा देने की धमकी देने वाले मंत्री नागर सिंह चौहान का समर्थन अथवा विरोध उन्होंने नहीं किया लेकिन दो लाइन में अपनी बात कह कर पार्टी को आइना जरूर दिखा दिया। उन्होंने कहा कि ‘कांग्रेस से भाजपा में आने वाले नेता मंत्री बन रहे हैं, यह उनका सौभाग्य है और हम जैसे विधायक मंत्री नहीं बन पा रहे यह हमारा दुर्भाग्य। हम खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘सीनियर नेता कोई बात कहते हैं तो पार्टी में उस पर ध्यान नहीं दिया जाता।’ रघुजी की तरह खरी बात कहने का खामियाजा विश्नोई ने भी भुगता है। रघुजी को प्रदेश उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा था और दूसरी बार उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा गया था। इधर विश्नोई को न शिवराज ने मंत्रिमंडल में शामिल किया था, न ही उन्हें डॉ मोहन यादव के मंत्रिमंडल में जगह मिली। हालांकि राजनीति में यह अच्छी परंपरा नहीं है। पार्टी को सही सलाह देने वालों का सम्मान किया जाना चाहिए, अपमान नहीं।