अंधकार से प्रकाश की ओर

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मनुष्य जन्म से प्रगति शील विचार और धारा का प्राणी है । मनुष्य की तार्किक क्षमता उसे दुनिया के समस्त जीव और प्राणियों से विशिष्ट बनाती है । प्रागैतिहासिक काल से आधुनिक काल तक मनुष्य निरंतर तरक्की कर रहा है और नित नए बदलावों को देख रहा है । रात दिन जैसी खगोलीय घटनाओं से व्यक्ति अंधकार और प्रकाश दोनों को जीना सीखता है । लेकिन चकमक पत्थर से चिंगारी की खोज के साथ ही मनुष्य के जीवन में रोशनी की शुरुआत हुई । रोशनी ऐसी की आज सारा विश्व जगमग है । वैज्ञानिक दृष्टि से रोशनी अर्थात प्रकाश की खोज और आध्यात्मिक भाव से देखें तो रोशनी अर्थात ज्ञान, सत्य की खोज ।

रोशनी मनुष्य के जीवन को सकारात्मक भाव से भर देती है । उजाला, ऊष्मा, ऊर्जा ये केवल व्याकरण के शब्द ही नहीं, ये जीवन को आह्लादित, उल्लासित और आनंदित करने वाले उपक्रम हैं । मनुष्य प्रकृति और अपनी गतिविधियों से सामंजस्य स्थापित कर दुनिया को जगमग करने की चाहत रखता है । लेकिन अंधकार से प्रकाश की ओर चलने की राह में अनेक बाधाएं और कठिनाइयां हैं । तम अर्थात अंधकार नकारात्मकता का प्रतीक है तो वहीं तिमिर घनघोर निराशा और भय की स्थिति को दर्शाता है । दीपावली पर्व उक्त सभी परिस्थितियों से लड़कर उदात्त मानवता की विजय का प्रतीक और प्रकाश का पर्व है ।

विभिन्न भारतीय धार्मिक मान्यताओं, रूढ़ियों, परंपराओं ने दीपावली पर्व को अपने अपने मत अनुसार आत्मसात किया है –

1. सर्वाधिक स्वीकार्य मान्यता और हिन्दू सनातन परंपरा के अनुसार दीपावली भगवान राम की लंका विजय के पश्चात वनवास से अयोध्या वापसी पर उनके पराक्रम, जिजीविषा और उदात्त विजय के रूप में मनाया जाता है । हिंदू सनातनी परम्परा का पांच दिवसीय दीपावली पर्व धनतेरस से प्रारंभ होकर, नरक चतुर्दशी(रूप चतुर्दशी), गोवर्धन पूजा, भाई दूज पर आकर पूर्ण होता है । यह पर्व घर घर दीपक जलाकर अंधकार पर प्रकाश की विजय अर्थात धन, धान्य समृद्धि की की अमर गाथा है ।
2. जैन परंपरा में दीपावली का दिन अत्यंत पवित्र माना जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान महावीर स्वामी (24वें तीर्थंकर) ने निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया था।
3. बौद्ध परंपरा में दीपावली को दीपदान उत्सव कहा जाता है “अशोक विजयादशमी” और “दीपमालिका” के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया था और अहिंसा तथा करुणा के मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा ली थी और चौरासी हजार स्तूपों पर दीप प्रज्वलित कर भारत को दुनिया में प्रकाशित किया था । कहीं-कहीं यह पर्व गौतम बुद्ध के वर्षावास के पश्चात लोगों से पुनः मिलने के प्रतीक रूप में भी मनाया जाता है। (संदर्भ ग्रन्थ : अशोकावतदान)
4. सिक्ख धर्म में भी दीपावली पर्व को सत्य न्याय और स्वतंत्रता की विजय के रूप में मनाया जाता है ।

ऋतु चक्र के अंतर्गत वर्षाकाल समाप्ति के पश्चात कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का पर्व मनाया जाता है । दीपावली के पूर्व वर्षाकालीन अस्त-व्यस्त जीवन, कीड़े – मकोड़े जीव जंतुओं के विचरण और कीचड़ आदि के कारण उपजे नकारात्मक, निराशाजनक और अंधकारमय माहौल तथा आद्रता (नमी) और वर्षाकाल में सूरज की रोशनी की कमी के कारण मनुष्यों की कमजोर होती रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण संक्रमण एवं बीमारियों से मुक्ति के लिए मनुष्य अपनी तार्किक क्षमताओं का उपयोग कर अपने आस-पास के वातावरण, परिवेश, निवास गृह की साफ-सफाई, लिपाई-पुताई, साज-सज्जा से तम को दूर भागने से लेकर दीपक, फुलझड़ी, पटाखे, और कृत्रिम रोशनी से ऊष्मा, ऊर्जा और शक्ति का संचार कर सब कुछ जग मग और रोशन करता है ।

भारत उत्सव धर्मी राष्ट्र है जहां पूरे वर्ष विभिन्न प्रकार के उत्सव, पर्व, त्यौहार बड़े हर्षोल्लास, उत्साह और प्रसन्नता के साथ साथ पूरे देश में मनाए जाते हैं । अंधकार से प्रकाश की ओर का पथ मानवता की स्थापना का प्रमुख साधन है । भारतीय धार्मिक परंपराएं दीपावली पर्व को धन धान्य, समृद्धि, ज्ञान, बुद्धि और प्रकाश के प्रतीक के रूप में मान्यता देती हैं । जिसे सभी को बड़े उल्लास से वैभव और कीर्ति के साथ मनाना चाहिए । व्यक्ति अतीत से सीखकर ही बेहतर सुंदर भविष्य की कल्पना कर सकता है । भगवान राम, भगवान महावीर, तथागत गौतम बुद्ध, सम्राट अशोक सभी के ऐश्वर्य से दुनिया में भारत की विजय पताका लहरा रही है । वर्तमान में आज आवश्यकता है कि मनुष्य अपने आराध्यों के पद चिन्हों पर चलकर “वासुदेव कुटुंबकम” और सर्व धर्म समभाव की भावना को अंगीकार कर मानवता की स्थापना में भागीदार बने ।

कमल सिंह मंडेलिया
(लेखक : प्रशासनिक अधिकारी, चिंतक और विचारक हैं )