व्यंग्य-गधों के सर्वे पर कम होते गधे और गधे की वसीयत

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गधा एक ऐसी प्रजाति है जो किसी परिचय की मोहताज नहीं है । गधा विशेषण का उपयोग आम बोलचाल की भाषा बखूबी किया जाता है । गधा सार्वभौमिक, सार्वकालिक, सर्वव्यापी जीव है । गधे की अपनी प्रॉपर्टी हैं जिसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती । प्रॉपर्टी भी ऐसी की कोई बराबरी न कर सके । गधा संगीत कला का भी धनी है गधे की ढ़ेंचू में जो संगीत है, दुनिया में उसका कोई सानी नहीं है। चिंता, तनाव, पीड़ा, क्लेश गधे के आस-पास नहीं फटकते ।

यह एक पालतू जानवर है जो घोड़े जैसा दिखता है । यहां यह विचारणीय है कि गधा मनुष्य की तरह शातिर, सियार की तरह बदमाश, कछुए की तरह सुस्त और खरगोश की तरह फुर्तीला नहीं है । गधा संतुलित प्राणी है । गधा धर्म, जाति, क्षेत्र, लिंग, संप्रदाय जैसी धारणाओं से कोसों दूर है । गधा शरीर और दिमाग से पूर्णतः पाक, साफ और सात्विक है क्योंकि गधा पूरी तरह शाकाहारी है । गधा सहनशील, धैर्यवान, शांतिप्रिय और संतोषी प्राणी है । गधे की कोई महत्वकांक्षा या तृष्णा नहीं है गधा जो मिल जाता है उसी में संतुष्ट रहता है । परोपकार कूट-कूट कर भरा है गधे में ।

आदमी ने गधे की प्रतिष्ठा को शुरू से ही कम करके आंका गया है । शातिर आदमी ने गधे को मूर्खता का पर्याय बना दिया है और अपनी प्रजाति के निकृष्ट, निकम्मे निठल्ले आदमी से तुलना करता है गधे की । आदमी फायदा उठाता है उसके सीधेपन का । गधा सहन कर जाता है सब । पी जाता है अपमान के घूंट, उसको अपनी क्षमताओं पर घमंड नहीं । गुरूर नहीं आदमी की तरह, न ही अमीरी गरीबी से उसकी सेहत पर कोई असर पड़ता है । चलता रहता है अपने मार्ग पर। करता है हाड़तोड़ मेहनत तब कमाता है रोजी-रोटी । निकम्मेपन, निठल्लेपन की आदत, घर परिवार समाज की बढ़ती लड़ाइयां, मरती मानवता, फैलती हैवानियत, शून्य होती संवेदनाओं, घनघोर अपराध और अत्याचार इन सबसे दूर है गधा और गधों का कुनबा । आजकल मूर्ख को गधा कहना गधे का अपमान है । “गधा अधिकार चेतना मंच” इसका मुखर और पुरजोर विरोध करता है ।

मध्यप्रदेश में हालिया गधों की गणना या सर्वे में पूरे प्रदेश में 3052 गधे निकले जो अत्यंत चिंताजनक है । सरकार को गधों का सरंक्षण करना चाहिए । बाघ संरक्षण की भांति गधों के संरक्षण के लिए अभ्यारण और राष्ट्रीय उद्यान विकसित करना होगा । आधुनकि समय में बड़ती अमानवीयता और पशुता के कारण गिरते स्तर को ध्यान में रखते हुए सर्वे इस बात का भी होना चाहिए कि मनुष्य में से कितने गधे हैं, उनके संरक्षण और पुनर्वास के क्या प्रयास किए जा रहे हैं । सरकार को ऐसे प्रशिक्षण केंद्र खोलना चाहिए जहां आदमी को शैतान की बजाय गधा बनाया जाए । ऐसे नियम बनाना होंगे जिनसे अस्तित्व बचा रहे गधों का क्योंकि आज के दौर में मानवता की स्थापना के लिए गधा होना बहुत जरूरी है । बोर्ड, होर्डिंग लगाना चाहिए सरकार को यहां आदमी को गधा बनाया जाता है । गधा शब्द हास्य नहीं गंभीरता का द्योतक होना चाहिए ।

निष्कर्षतः मनुष्य से अच्छे तो गधे हैं । आदमी को गधे से शिक्षा लेना चाहिए । गुरु बनाना चाहिए गधे को । प्रेरणा लेना चाहिए मनुष्य को, सीखना चाहिए । गधों के अंदर राग, द्वेष, भेद-भाव, सांप्रदायिक तनाव जैसी चीजें रत्ती भर नहीं हैं । “इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट” अंतर्गत गधे की विशेषताओं का कॉपी राइट होना चाहिए । आदमी करे गधे की सेवा सुश्रुषा मरते दम तक रखे पाल पोशकर जिससे गधा मनुष्य की सेवा से प्रसन्न होकर कर सके अपनी प्रॉपर्टी की वसीयत ताकि गधे की सारी विशेषताओं को अंगीकार कर कुछ तो बदले आदमी । बने धैर्यवान, सहनशील, संवेदनशील, शांतिप्रिय, संतोषी, मेहनती और परोपकारी गधे की तरह । बंद करे दुष्टता, चालाकी, धूर्तता । सीखे मानवता गधे से ।

कमल सिंह मंडेलिया
(लेखक : प्रशासनिक अधिकारी, चिंतक और विचारक हैं)