राम निवास जी, कमलेश शाह से ही कुछ सीख लेते….

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Ram Niwas ji, he could have learned something from Kamlesh Shah…
Ram Niwas ji, he could have learned something from Kamlesh Shah…

Ram Niwas ji, he could have learned something from Kamlesh Shah…

  • इससे पत्नियों की जान पर आफत आ सकती है मंत्री जी…!

वरिष्ठ पत्रकार दिनेश निगम ‘त्यागी’
का लोकप्रिय कॉलम राज-काज

Analysis… The stature of many leaders increased in BJP, all Congress leaders collapsed.
Ram Niwas ji, he could have learned something from Kamlesh Shah…
  • शिवराज कितने पावरफुल, बुदनी में ‘लिटमस टेस्ट’….!

शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री भले नहीं बन पाए लेकिन बड़े विभागों के साथ ताकतवर केंद्रीय मंत्री बनने में सफल रहे। भविष्य में प्रदेश की राजनीति में शिवराज कितने पॉवरफुल रहेंगे, इसका ‘लिटमस टेस्ट’ बुदनी विधानसभा सीट के उप चुनाव में हो जाएगा। बुदनी से शिवराज के बेटे कार्तिकेय दावेदार हैं। शिवराज के इस्तीफे के बाद से वे क्षेत्र में सक्रिय हैं। सवाल यह है कि भाजपा कार्तिकेय को टिकट देती है या नहीं। इसे लेकर दो तरह के तर्कों के साथ चर्चा हो रही है। पहला, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे नोएडा विधानसभा सीट से टिकट लेकर विधायक बन सकते हैं तो कार्तिकेय क्यों नहीं? दूसरा, मप्र में प्रदेश के वन मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी अनीता चौहान को रतलाम लोकसभा से टिकट दिया जा चुका है। इस लिहाज से कार्तिकेय को भी टिकट मिल सकता है। दूसरा पक्ष यह है कि भाजपा नेतृत्व ने कैलाश विजयवर्गीय को विधानसभा का टिकट देकर उनके बेटे आकाश का टिकट काट दया। प्रहलाद पटेल को टिकट देकर उनके भाई जालम सिंह का पत्ता साफ कर दिया। इस लिहाज से शिवराज के बेटे को भी टिकट नहीं मिल सकता। इसलिए, कार्तिकेय का टिकट शिवराज के ताकत की पहली परीक्षा होगी। इससे संकेत मिलेंगे कि भविष्य में प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव, मंत्रिमंडल विस्तार, निगम-मंडलों में नियुक्तियां आदि में शिवराज की कतनी चलेगी?

इससे पत्नियों की जान पर आफत आ सकती मंत्री जी….!

प्रदेश सरकार के सामाजिक न्याय मंत्री नारायण सिंह कुशवाह की महिलाओं को दी गई एक सलाह सुर्खियां बटोर रही है। उन्होंने कहा था कि पत्नियां अपने पतियों से कहें कि वे बाहर शराब न पिएं। पीना है तो बाहर से लेकर आएं और घर में बैठकर हमारे सामने पिएं। मंत्री जी का कहना था कि बाहर से आने वाले पतियों को बेलन से पीटें और रात में भोजन भी न दें। उनका कहना था कि घर में पत्नी, बच्चों के सामने शराब पीने से उन्हें शर्म आएगी, पहले वे कम पिएंगे और धीरे-धीरे शराब छोड़ देंगे। मंत्री जी को कौन समझाए कि यदि पीने वाले पतियों में थोड़ी भी शर्म होती तो वे पीकर हिलते-डुलते घर नहीं आते। शराब पीने से रोकने और शराब के लिए पैसा न देने पर महिलाओं की पिटाई न होती। वे बेलन दिखाने या मारने लगीं तब तो उनकी जान को ही आफत आ जाएगी। एक मंत्री के नाते कुशवाह को शराबबंदी या नशा मुक्ति अभियान पर जोर देना चाहिए। लड़ने-झगड़ने और पीकर सड़क पर उधम करने वालों को नशा मुक्ति केंद्र भेजने की व्यवस्था करना चाहिए। ऐसा करने की बजाय वे शराब का प्रचार करते और परिवारों में झगड़ा कराते दिखाई पड़ रहे हैं। पियक्कड़ पूरे परिवार के कहने पर भी शराब नहीं छोड़ता, मंत्री जी की सलाह मानने पर परिवार में विवाद बढ़ सकते हैं। कांग्रेस का कहना है कि मंत्री के बयान से घरेलू हिंसा को बढ़ावा मिलेगा।

राम निवास जी, कमलेश शाह से ही कुछ सीख लेते….

कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आए राम निवास रावत आधा दर्जन बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं जबकि कमलेश शाह महज तीन बार के विधायक हैं। रावत पिछड़ा वर्ग से आते हैं और शाह आदिवासी वर्ग से। दोनों का फर्क देखिए, राम निवास ने वह पार्टी कांग्रेस छोड़ दी, जिसके टिकट पर जीत कर वे विधायक बने थे लेकिन नैतिकता के नाते विधानसभा की सदस्यता नहीं छोड़ी। वे अब भी कह रहे हैं कि मैं विधायकी से इस्तीफा नहीं दे रहा हूं,जब समय आएगा तब दूंगा। दूसरी तरफ कमलेश शाह ने कांग्रेस छोड़ने के साथ ही विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया और अब भाजपा के टिकट पर अमरवाड़ा से उप चुनाव का सामना कर रहे हैं। क्या इसका मतलब यह नहीं कि अन्य वर्गों के तुलना में आज भी आदिवासी समाज में ज्यादा नैतिकता मौजूद है? वे शुचिता और चरित्र पर ज्यादा ध्यान देते हैं। राम निवास वरिष्ठ राजनेता हैं, उनसे राजनीतिक नैतिकता की अपेक्षा की जाती है। कांग्रेस छोड़ने के साथ उन्होंने विधानसभा की सदस्यता नहीं छोड़ी कोई बात नहीं। अब तो उन्हें कमलेश शाह से कुछ सीख कर विधायकी का मोह त्याग देना चाहिए और उप चुनाव का सामना कर फिर सदन में आना चाहिए। रावत का बार-बार कहना कि वे अभी इस्तीफा नहीं दे रहे, समय आने पर देंगे। उन्हें पदलोलुप साबित कर रहा है।

जीतू, उमंग, हेमंत के बीच अब भी तालमेल की कमी….!

विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश की कमान नई युवा टीम को सौंपी थी। वरिष्ठ नेता कमलनाथ के स्थान पर जीतू पटवारी प्रदेश अध्यक्ष और डॉ गोविंद सिंह की जगह उमंग सिंघार नेता प्रतिपक्ष बनाए गए थे। हेमंत कटारे को उप नेता प्रतिपक्ष की जवाबदारी सौंपी गई थी। नेतृत्व को उम्मीद थी कि युवा टीम को जवाबदारी सौंपने से पार्टी में उत्साह का संचार होगा। टीम तालमेल के साथ ज्यादा जोश से काम करेगी और बड़ी तादाद में युवा पार्टी के साथ जुड़ेंगे, लेिकन टीम नेतृत्व के भराेसे पर खरा नहीं उतर रही। लोकसभा चुनाव के दौरान जीतू, उमंग और हेमंत के बीच तालमेल दिखाई नहीं पड़ा। नतीजा, पार्टी काे इतिहास की सबसे बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। इस पराजय से भी तिकड़ी ने कोई सबक नहीं लिया। अमरवाड़ा विधानसभा सीट के लिए हो रहे प्रतिष्ठापूर्ण उप चुनाव में भी इनके बीच तालमेल नहीं है। अमरवाड़ा आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है लेकिन इस वर्ग से होने के बावजूद नेता प्रतिपक्ष सिंघार उप चुनाव में कोई दिलचस्पी लेते दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। जीतू ही क्षेत्र में डेरा डालकर प्रचार कर रहे हैं। हेमंत कटारे भी अमरवाड़ा नहीं पहुंचे। तालमेल की यह कमी कांग्रेस नेतृत्व की उस मंशा पर पानी फेर रही है, जिसे ध्यान में रख वरिष्ठों को दरकिनार कर युवा नेतृत्व को कमान सौंपी गई थी।

मुख्यमंत्री भी नहीं जानते थे सिलावट का यह राज….

आप यह जानकर ताज्जुब करेंगे कि लंबे समय तक कांग्रेस के नेता रहे और अब प्रदेश के जलसंसाधन मंत्री तुलसी सिलावट भी मीसीबंदी हैं। वे भी आपातकाल के दौरान लगभग तीन माह तक जेल में रहे हैं। हम सब की तरह यह सच मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को भी नहीं मालूम था। हुआ यह कि मुख्यमंत्री निवास में मीसा बंदियों का सम्मेलन आयोजित था। मंच पर मेघराज जैन, विक्रम वर्मा, सूर्यकांत केलकर कैलाश सोनी, अजय बिश्नोई जैसे जनसंघ के जमाने के मीसा बंदी बैठे थे।

इनके बीच मंत्री तुलसी सिलावट भी मंचासीन थे। सिलावट लगभग 5 साल पहले ही कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आए हैं। इसलिए किसी को कल्पना नहीं थी की तुलसी सिलावट भी मीसा बंदी हो सकते हैं। मुख्यमंत्री डॉ यादव जब संबोधन के लिए खड़े हुए और मंच की तरफ मुखातिब होकर विशिष्ट जनों के नाम ले रहे थे, तब वे भी चौंक गए। उन्होंने कहा कि अरे तुलसी सिलावट भी मीसा बंदी है यह तो मुझे पता ही नहीं था। बाद में जानकारी मिली कि तुलसी सिलावट आपातकाल के दौरान देवी अहिल्याबाई महा विद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष थे। इस नाते उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया था। वे लगभग तीन माह जेल में रहे थे, हालांकि सिलावट मीसा बंदी की पेंशन नहीं लेते।