On the lines of Congress, there is a clash in BJP also…
दिनेश निगम ‘त्यागी’ राज-काज
भाजपा में बदलाव दिखने लगा है, वह भी कांग्रेस की तर्ज पर। जिन बुराईयाें के लिए कभी कांग्रेस चर्चा में रहती थी, भाजपा भी उसी रास्ते पर है। अनुशासन ताक में रखकर पहले कांग्रेस में सिर फुटाैव्वल होती थी। अब भाजपा के अंदर आपस में तलवारे खिचने लगी हैं। हालात ये हैं कि अंतर्कलह के मामले में भाजपा अब कांग्रेस से आगे निकलती दिख रही है। पार्टी नेता सरेआम एक दूसरे के कपड़े उतारने लगे हैं। रीवा में सांसद जनार्दन मिश्रा और विधायक सिद्धार्थ तिवारी एक दूसरे के खिलाफ आग उगल रहे हैं। छतरपुर में विधायक, पूर्व मंत्री और पूर्व विधायकों ने केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। एक कार्यक्रम में सांसद चौधरी दर्शन्ा सिंह का नाम पहले लिखे जाने पर प्रदेश के स्वास्थ्य राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल ने सार्वजनिक नाराजगी जाहिर कर दी। उन्होंने प्रोटोकॉल का हवाला देखकर कहा कि उनका अपमान किया गया। ये कुछ उदाहरण हैं। इसके अलावा कई जिलों में आपसी कलह की वजह से अफसर और कार्यकर्ता परेशान हैं। रीवा और छतरपुर के विवाद में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा को हस्तक्षेप करना पड़ गया। बड़ी तादाद में कांग्रेस नेताओं के भाजपा ज्वाइन करने के कारण पार्टी को कांग्रेसयुक्त भाजपा कहा जाने लगा है। इसकी वजह से भी भाजपा के अंदर अतर्कलह बढ़ी है।
आदिवासी वोट बैंक को साधने नए नेतृत्व पर दांव….!
आदिवासी वर्ग भाजपा के लिए चिंता का विषय है और कांग्रेस के लिए भी। दोनों दल इसे बड़े वोट बैंक की नजर देखते हैं। पहले यह कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक था, बाद में यह भाजपा के पाले में चला गया। इस वर्ग ने 2018 के विधानसभा चुनाव में फिर पलटी मारी और आदिवासी वर्ग की अधिकांश सीटें कांग्रेस की झोली में चली गईं। 2023 के चुनाव में मिला-जुला नतीजा आया। अर्थात सीटें भाजपा को भी मिलीं और कांग्रेस को भी। अब दोनों दल नए नेतृत्व के जरिए इस वर्ग को साधने की तैयारी में हैं। कांग्रेस युवा उमंग सिंघार को नेता प्रतिपक्ष बनाकर इस दिशा में कदम आगे बढ़ा चुकी है। विक्रांत भूरिया विधानसभा चुनाव तक युकां के प्रदेश अध्यक्ष थे, अब उन्हें कोई बड़ी जवाबदारी मिल सकती है। उन्होंने राहुल गांधी से दिल्ली में मुलाकात भी की है। विक्रांत का नाम युका के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए भी चला था। इसके साथ कांग्रेस में कांतिलाल भूरिया का युग समाप्त हो सकता है। भाजपा में भी आदिवासी वर्ग में नए नेतृत्व को आगे लाने की कसरत चल रही है। खबर है कि भाजपा इस बार प्रदेश अध्यक्ष पद पर किसी आदिवासी महिला को मौका दे सकती है। इसके लिए प्रदेश सरकार की मंत्री संपत्तिया उइके का नाम चर्चा में है। संपत्तिया आगे आईं तो भाजपा में फग्गन सिंह कुलस्ते का युग समाप्त हो सकता है। फग्गन-कांतिलाल विधानसभा चुनाव हार गए थे। हालांकि फग्गन लोकसभा सदस्य हैं, लेकिन इस बार उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया।
‘मामा-भैया’ के बाद ‘किसान का बेटा’ बनने की तैयारी….
इस सच से कोई इंकार नहीं कर सकता कि विधानसभा चुनाव में भाजपा को बंपर बहुमत ‘लाड़लियों’ की बदौलत मिला है। इस श्रेय के हकदार हैं पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, जिन्होंने ‘लाड़ली बहना योजना’ लांच की। अन्य कई योजनाओं के कारण भी उन्होंनेे लाड़लियों के बीच अपनी इमेज मामा और भैया की बनाई। बहनों, भांजे-भांजियों का उन्हें भरपूर समर्थन भी मिला। शिवराज अब केंद्र में कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री हैं। लिहाजा, मामा-भैया के स्थान पर अब वे किसान के बेटे के तौर पर इमेज बनाने की तैयारी में हैं। इस दिशा में उनके प्रयास शुरू हाे गए हैं। बिजली की गति से सोयाबीन की एमएसपी पर खरीद काे मंजूरी इसका उदाहरण है। पहले उन्होंने कहा कि राज्य सरकार इस संबंध में जो प्रस्ताव देगी, उसे स्वीकार कर लिया जाएगा। राज्य सरकार ने जैसे ही प्रस्ताव केंद्र के पास भेजा, शिवराज ने बिना देर किए उसे मंजूरी दे दी। किसान इस समय आंदोलन की राह पर है। शिवराज ने निर्णय लिया है कि अब वे किसान संगठनों से नियमित मुलाकात कर उनकी समस्याएं सुनेंगे और उनका समाधान करने की कोशिश करेंगे। किसानों से मुलाकात का दिन, समय भी तय हो गया है। इस तरह शिवराज किसानों का दिल जीतने की कोशिश करेंगे ताकि किसान उन्हें अपना भाई समझें और वे बड़े किसान नेता के तौर पर उभर सकें।
‘जोश में होश’ खो रहे कांग्रेस के ये जवाबदार नेता….
कांग्रेस के नेता अपने बयानों में ‘जोश में होश’ खो रहे हैं। निशाने पर है प्रदेश की नौकरशाही। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ कहते थे कि ‘भाजपा का एजेंट बन कर काम न करें, आज के बाद कल भी आएगा, तब हम आपका हिसाब करेंगे।’ उन्होंने कांग्रेस नेताओं को ऐसे अफसरों की सूची बनाने के लिए भी कह दिया गया था। नतीजा क्या हुआ, भाजपा फिर सत्ता में आ गई और अधिकारी जहां के तहां हैं। अब कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं जीतू पटवारी और उमंग सिंघार। कमलनाथ की भाषा शालीन होती थी, जबकि पटवारी और सिंघार जोश में होश खोते दिख रहे हैं। पटवारी ने नर्मदापुरम में कहा, ‘एसपी-कलेक्टर के साथ थानों के प्रभारी तक की पोस्टिंग रिश्वत देकर होती है। इसलिए वे भाजपा का एजेंड बन कर काम कर रहे हैं।’ राहुल गांधी के मामले में केंद्रीय मंत्री के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने गए तो ‘थाना प्रभारी को भाजपा का मंडल अध्यक्ष’ कह दिया। उमंग सिंघार कहां पीछे रहने वाले थे, किसान न्याय यात्रा में हिस्सा लेते हुए उन्होंने कहा कि ‘कलेक्टर सहित अधिकारियों को भाजपा का झंडा ही उठाने का शौक है तो आरएसएस की चड्डी पहन लें।’ सवाल है कि ऐसे बयान देकर कांग्रेस के नेता क्या हासिल कर लेंगे? इन्हें अफसरों को एक तराजू में तौल कर भला-बुरा कहने से बचना चाहिए। आखिर, सरकार की सुनना उनकी मजबूरी है।
‘मरहम’ की बजाय ‘जले में नमक’ छिड़क गए मंत्री….
सरकारी अधिकारी-कर्मचारी आंदोलन पर सरकार से उनकी मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार कर ‘मरहम’ लगाने की आशा की जाती है। मांगें पूरी न करने की स्थिति हो, तब भी बातचीत कर आंदोलन समाप्त कराने की कोशिश होती है। लेकिन प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह ने अतिथि शिक्षकों के ‘जले पर नमक’ ही छिड़क दिया। उन्होंने जाे कहा, ऐसी भाषा की उम्मीद किसी मंत्री से नहीं की जाती। उन्होंने कहा कि अितथि शिक्षक हमारे अतिथि हैं, अतिथि को घर में कब्जा करने की अनुमति कैसे दी जा सकती है? उनका नियमितीकरण कैसे किया जा सकता है? हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की कोशिश होगी की अतिथि शिक्षक नियुक्त होने के बाद पूरे सत्र तक लगे रहें, लेकिन यदि संबंधित स्कूल में नियमित शिक्षक पहुंच गया तो उनको जाना होगा। मंत्री के इस बयान से अतिथि शिक्षक आगबबूला हैं। उन्होंने और बड़े आंदोलन का एलान कर दिया है। विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अतिथि शिक्षकों के नियमितीकरण का वादा किया था। वे इस वादे की ही याद दिला रहे हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री और मंत्री भले बदल गए हों लेकिन सरकार तो भाजपा की ही है। सवाल यह है कि कोई मंत्री आंदोलन को ठंडा करने की बजाय आग में घी डालने का काम कैसे कर सकता है।