‘मोहन’ के लिए ‘श्री कृष्णम शरणम मम:’ मुख्य मंत्र….

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For 'Mohan', 'Shri Krishnam Sharanam Mam:' is the main mantra....
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दिनेश निगम ‘त्यागी’ (राज-काज)

भाजपा देश भर में भगवान राम को आराध्य मान कर राजनीति के पथ पर आगे बढ़ी है। इस बीच मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने ‘श्री कृष्णम शरणम मम:’ को मुख्य मंत्र मान कर आगे बढ़ने का निर्णय लिया है। मंत्र का अर्थ है, ‘मेरे लिए श्रीकृष्ण ही शरण हैं, रक्षक और आश्रय हैं। वही मेेरे लिए सर्वस्व हैं।’ डॉ यादव इसे अंगीकार करते हुए मानते हैं कि ‘इस भावना से दीनता बनी रहती हैं और अहंकार का उदय नहीं होता।’ इसीलिए डॉ यादव ने तय किया है कि प्रदेश में जहां-जहां कृष्ण के चरण पड़े हैं, उन स्थानों को तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। चार प्रमुख स्थलों उज्जैन के संदीपनी आश्रम एवं नारायण धाम, धार के अझमेरा और महू के जनापाव को तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करने की घोषणा इसी दिशा में एक कदम है। मुख्यमंत्री डॉ यादव के निर्देश पर पहली बार सरकार द्वारा आदेश जारी कर सभी शासकीय, अशासकीय शिक्षण संस्थानों में जन्माष्टमी पर्व मनाने के लिए कहा गया। भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा, मित्रता के प्रसंग और जीवन दर्शन पर आधारित विभिन्न विषयों पर व्याख्यान और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करने के निर्देश दिए गए। डॉ यादव की कोशिश श्रीकृष्ण के जरिए भाजपा के पक्ष में एक बड़ा वोट बैंक लामबंद करने की है। ऐसा करने में वे सफल होते भी दिख रहे हैं, श्रीकृष्ण सबके आराध्य जो हैं।

निर्मला’ के नाम भी लाटरी खोलने की तैयारी….

लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के तीन विधायकों राम निवास रावत, कमलेश शाह और निर्मला सप्रे ने पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थामा था। इनमें से राम निवास और कमलेश को मंत्री बनने का आश्वासन मिला था। रावत मंत्री बन गए लेकिन शाह इंतजार करते रह गए, जबकि विधानसभा की सदस्यता से सबसे पहले उन्होंने ही इस्तीफा दिया था। राम निवास ने मंत्री बनने के बाद इस्तीफा दिया।

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निर्मला को उनके क्षेत्र बीना को जिला बनाने का आश्वासन मिला था। दूसरी तरफ पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह बीना से सटे खुरई को जिला बनवाने की घोषणा करा चुके हैं। खुरई और बीना दोनों को जिला बनाया नहीं जा सकता। इसीलिए निर्मला ने अब तक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया। उन्हें इमरती देवी बनने का भी डर है। इमरती कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने के बाद दो चुनाव हार चुकी हैं, जबकि उनके क्षेत्र डबरा के लिए सभी घोषणाएं की गईं और हार के बाद भी उन्हें निगम-मंडल में एडजस्ट किया गया। निर्मला को डर है कि यदि बीना को जिला बनाने की मांग पूरी न की गई तो वे चुनाव हार सकती हैं। भाजपा नेतृत्व को इस बात का अहसास है। इसीलिए बीना को जिला बना कर निर्मला के नाम लाटरी खोलने की तैयारी है। मुख्यमंत्री के अगले दौरे में ही इसकी घोषणा की जा सकती है। बीना को जिला बनाने की मांग पुरानी है और गलत भी नहीं।

ये बेचारे, संगठन से हारे, फिर रहे मारे-मारे’….

फिर ठगे से रह गए प्रदेश भाजपा के कई नेता। ये बेचारे अपने संगठन से ही हार गए और मारे-मारे फिरने के लिए मजबूर हो गए। हम बात कर रहे हैं राज्यसभा के दावेदारों केपी सिंह यादव, नरोत्तम मिश्रा, जयभान सिंह पवैया और कांग्रेस से भाजपा में आए सुरेश पचौरी की। सबसे बुरी दशा पूर्व सांसद केपी सिंह की हुई। इन्होंने 2019 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया को हराया था। कोई कल्पना कर सकता है कि महाराज को हराने वाले अपने सांसद का टिकट भाजपा काट सकती है।

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पर ऐसा हो गया और केपी का टिकट सिंधिया को ही थमा दिया। इस आघात के बाद भी केपी ने धैर्य नहीं खोया। सिंधिया के इस्तीफे से खाली राज्यसभा सीट पर केपी का हक था। केंद्रीय मंत्री अमित शाह जैसे बड़े नेता ने आश्वासन दे रखा था। पर हद देखिए, केपी की मंशा पर पानी फिर गया। भाजपा ने केरल के जार्ज कुरियन को राज्यसभा का प्रत्याशी घोषित कर दिया। इस तरह सिंधिया ने बिना चुनाव केपी से अपनी हार का बदला ले लिया, वह भी कांग्रेस से भाजपा में आकर। केपी के साथ अन्य दावेदार नरोत्तम मिश्रा, जयभान सिंह पवैया और कांग्रेस से भाजपा में आए सुरेश पचौरी भी हाथ मलते रह गए। फरवरी में बाहर के एल मुरुगन भाजपा से राज्यसभा गए थे, इस बार केरल के जार्ज कुरियन प्रदेश के नेताओं पर भारी पड़ गए। 

आदिवासी’ ने दिखाए तेवर, उड़ी रावत की नींद….

कांग्रेस में रह कर विधानसभा के 6 चुनाव जीतने वाले राम निवास रावत भाजपा में जाकर सरकार में मंत्री जरूर बन गए लेकिन आगे की उनकी राह आसान नहीं है। भाजपा के पूर्व विधायक सीताराम आदिवासी ने मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के सामने ही तीखे तेवर दिखा दिए। उन्होंने राम निवास से कहा कि अपने समाज के लोगों को संभालो, लड़ाई-झगड़ा न करें वर्ना नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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हम किसी से डरते नहीं। आदिवासी का कहना है कि क्षेत्र में हमारे समाज के 60 हजार मतदाता हैं जबकि रावत के समाज के महज 15 हजार। आदिवासी के इन तेवरों ने रावत की नींद उड़ा दी। भाजपा के एक और पूर्व विधायक बाबूलाल मेवरा भी राम निवास को भाजपा में लिए जाने से असंतुष्ट हैं। बाबूलाल 2018 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ कर 35 हजार से ज्यादा वोट हासिल कर चुके हैं। बाद में वे भाजपा में वापस आ गए थे। कांग्रेस की नजर भाजपा के इन दोनों पूर्व विधायकों पर है। साफ है कि राम निवास को विधानसभा उप चुनाव से पहले आदवासी और मेवरा को साधना जरूरी है। वर्ना असली कांग्रेसी तो उनके साथ रहेंगे नहीं, भाजपा का एक वर्ग भी साथ छोड़ सकता है। भाजपा नेतृत्व इस हकीकत से वाकिफ है। इसलिए आदिवासी और मेवरा को साधने के प्रयास चल रहे हैं। शीघ्र इन्हें निगम मंडलों में एडजस्ट किया जा सकता है।

 इस तरह जनता की नब्ज पकड़ते हैं ‘गोपाल’….

बुंदेलखंड के सागर जिले की रहली सीट से विधायक और भाजपा के कद्दावर नेता गोपाल भार्गव यदि 9 बार से लगातार चुनाव जीत रहे हैं तो इसकी वजह है जनता की नब्ज पकड़ने की उनकी काबिलियत। वे परख  लेते हैं कि किस मसले पर जनता क्या चाहती है। इस क्षमता और अन्य सामाजिक कार्यों की बदौलत वे 2023 का चुनाव भी लगभग 72 हजार वोटों के बड़े अंतर से जीते, जबकि चुनाव के दौरान एक भी दिन प्रचार के लिए नहीं निकले।

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सागर के बस स्टैंड को लेकर हुए विवाद पर भी उन्होंने जनता की नब्ज पकड़ी। जब सागर के अन्य नेता नए बस स्टैंड में जमीनों के विवाद में उलझ रहे थे। जमीन की कीमत बढ़ने के कारण बस स्टैंड को नए स्थान पर ले जाना चाहते थे। तब गोपाल ने अफसरों से नए बस स्टैंड पर अपना विरोध दर्ज करा दिया, पहले उनकी बात नहीं मानी गई। इसके विरोध में जनता सड़क पर उतर आई और बस आपरेटर ने हड़ताल शुरू कर दी। रक्षाबंधन जैसे त्यौहार के समय लोग परेशान थे। तब गोपाल भार्गव ने बस स्टैंड स्थानांरित न करने के लिए मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को पत्र लिखा। प्रभार मिलने के बाद उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल सागर पहुंचे तो सभी पक्षों को साथ लेकर उनके साथ बैठक की। नतीजा पुरानी जगह से ही बस स्टैंड का संचालन प्रारंभ हो गया और भार्गव जिंदाबाद के नारे लगने लगे।