एस.पी. साहब की ये ख्याति हो गई थी कि जो भी मिलने जाए , उसे वे दो-तीन घंटे बैठाए बिना नहीं छोड़ते थे , और साथ ही अपनी लघु कविताएँ भी उसे सुनाते रहते ।

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रविवारीय गपशप
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सरकारी दफ्तरों में कोई जाए और उसे अफसर समाने बिठा कर बात सुन ले तो आधी संतुष्टि तो हो ही जाती है । नौकरी के आख़िर में जब मैं मध्यप्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जी का सचिव नियुक्त हुआ तो मेरा यही काम था कि मुख्यमंत्री जी से मिलने आने वाले सम्मानीय विधायक और सांसदों को प्रेम सहित बिठाना , चाय पिलाना और सरकारी विभागों से सामंजस्य कर उनकी जनसामान्य से संबंधित समस्याओं का निराकरण कराना । इन तीन चार सालों में मेरा कक्ष प्रदेश के विभिन्न अंचलों से पधारे जनप्रतिनिधियों से भरा रहता था । लेकिन फ़ील्ड की स्थितियाँ भिन्न होती हैं , कई बार अफसरों के पास लोग केवल बैठने के लिहाज़ से पहुँच जायें , तो सरकारी काम और वक्त दोनों की बर्बादी होती है । मैं ग्वालियर में परिवहन विभाग में उपायुक्त परिवहन था तो एक दिन किसी काम के सिलसिले में भिण्ड जाना हुआ । अपना कामकाज निपटा कर मैंने सोचा कि कलेक्टर से भी मिल लूँ , तो कलेक्ट्रेट पहुँच गया । कलेक्टर के सामने पहुँचा तो देखा मेज़ के पीछे वे अकेले बैठे हैं , सामने कोई कुर्सी नहीं है । उन्होंने मुझे देखा और परिचय जाना तो घंटी बजा कर दरबान से कुर्सी लाने को कहा । मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ , तो मैंने पूछा सर ऐसा क्यों ? वे कहने लगे अरे क्या बतायें कुछ लोग बिना बात सामने कुर्सी पर जम जाते हैं और हम अपना काम भी नहीं कर पाते, तो जो बैठाने लायक हुआ , उसके लिए कुर्सी बुलवा लेता हूँ , बाक़ियों से बात करने के लिए ख़ुद खड़ा हो जाता हूँ , सो बंदा खड़ा खड़ा कितनी बात करेगा ? काम की बात ख़त्म होते ही ख़ुद चला जाता है । लेकिन सब दूर ऐसा नहीं है , सीहोर में जब मैं मुख्यालय एसडीएम हुआ करता था तब एक सज्जन मुझसे मिलने आए और पुलिस से संबंधित कोई उनका काम बताने लग गए । मैंने कहा , भाई ये तो मेरे दायित्वों से संबंधित काम नहीं है , आप एस.पी. साहब के पास क्यों नहीं जाते , वे तो भले इंसान हैं , सबसे बड़े प्रेम से बात करते हैं । सज्जन कहने लगे “अरे नहीं साहब आज मुझे जल्दी है , कुछ जरूरी काम से भोपाल भी जाना है , एस.पी. साहब के पास गया तो वे दो-तीन घंटे से पहले नहीं छोड़ेंगे , आपसे बन पड़े तो आप ही थानेदार से बोल दो वहाँ तो फिर कभी चला जाऊँगा । उन दिनों सीहोर एस.पी. साहब की ये ख्याति हो गई थी कि जो भी मिलने जाए , उसे वे दो-तीन घंटे बैठाए बिना नहीं छोड़ते थे , और साथ ही अपनी लघु कविताएँ भी उसे सुनाते रहते ।
सीहोर से मेरा तबादला सागर हुआ तो मेरी मुलाकात जे.पी.खिची साहब से हुई जो उन दिनों वहाँ ए.डी.एम. हुआ करते थे । मैं सागर में मुख्यालय का अनुविभागीय अधिकारी बना तो लंच के समय कभी कभार उनके पास गप्पें मारने चला जाता । ऐसी ही एक दोपहर में , मैं उनके समक्ष बैठा था , तो कक्ष में एक नेतानुमा बन्दे ने प्रवेश किया और उन्हें नमस्कार किया । खिची साहब उसे देखते ही उठ गए और बोले “ अरे यार हम जरा दौरे पर जा रहे हैं , आप फिर कभी आना , और मुझसे कहा चलिए । मैं अचंभित उनके पीछे पीछे चल दिया , बाहर आकर वे जीप मैं बैठे , और मुझसे कहा बैठो । मेरे जीप में बैठते ही उन्होंने जीप दौड़ा दी , वे सज्जन पीछे से ताकते ही रह गए । सागर की कलेक्ट्रेट का एक पूरा चक्कर लगा कर अपने ऑफिस के सामने वापस आकर जीप रोकी और बोले चलो चाय पीते हैं । हम दोबारा उनके ऑफिस में जाकर बैठ गए । मैंने पूछा सर ये क्या था ? खिची साहब बोले “ अरे यार बड़ा चिपकू आदमी है , ना जाने कहाँ कहाँ से किस किस के उल्टे सीधे काम ले आता है और सामने बैठ कर कहीं किसी को कभी किसी को फ़ोन लगाने की सिफ़ारिश करने लगता है , इसलिए मैंने ये शरारत की वरना अपना कामकाज छोड़ मैं अगले एक घंटे तक उसे ही झेलता रहता ।

आनंद शर्मा
पूर्व आईएएस