चरैवेति चरैवेति : राष्‍ट्र सेवा में भाजपा के नवनियुक्त प्रदेश उपाध्यक्ष सुरेंद्र शर्मा जी का सतत प्रवाह

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जीवन की धारा जब बहती है तो उसमें अनेक मोड़ आते हैं। कोई उस धारा के संग बह जाता है, और कोई स्वयं वह प्रवाह बन जाता है, जो दूसरों को दिशा देता है। भारतीय जनता पार्टी के मध्य प्रदेश प्रदेश उपाध्यक्ष श्री सुरेंद्र शर्मा ऐसे ही व्यक्तित्व हैं, जिनके जीवन का हर क्षण “चरैवेति चरैवेति” के मंत्र से आलोकित है। न थकना, न रुकना; बस चलते रहना। यही उनका पथ है, यही उनका परिचय।

वस्‍तुत: उनका जीवन किसी संगीत की तरह है, जिसमें उत्साह की लय, संघर्ष की धुन और सेवा की सरगम निरंतर गूँजती रहती है। वे उन चुनिंदा लोगों में हैं जिनके व्यक्तित्व में कर्मयोग का तेज और विनम्रता की शीतल छाया साथ-साथ चलती है।

संघर्ष से साधना तक की यात्रा

सुरेंद्र शर्मा का जीवन उस साधक की कहानी है जिसने शक्ति और सेवा, दोनों को साधा है। जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने उन्हें भिंड में संगठन का विस्तार करने का दायित्व सौंपा, तो उन्होंने उस कार्यक्षेत्र को ही अपना कर्मक्षेत्र बना लिया। वे वहाँ पूर्णकालिक कार्यकर्ता (प्रचारक) के रूप में गए और अल्प समय में ही उन्होंने छात्र-आंदोलन को ऊर्जा देने वाली अनेक धाराएँ वहाँ प्रवाहित कर दी थीं। इसके साथ जब वे ग्‍वालियर से होते हुए भोपाल में केंद्र होने के साथ मध्‍यभारत के संगठन मंत्री बने तो जैसे उनकी संगठन क्षमता, संवाद कुशलता और अदम्य ऊर्जा ने विद्यार्थी परिषद को नए आयाम मिल गए हों। धीरे-धीरे उन्होंने मध्य भारत प्रांत और उससे आगे बढ़कर मालवा प्रांत तक संगठन के सूत्रों को एक सूत्र में पिरोया। वे लम्बे समय तक प्रांत संगठन मंत्री रहे; यह पद उनके लिए सम्मान का नहीं, बल्कि सदैव उनके लिए सेवा का पर्याय रहा ।

युवा चेतना के शिल्पकार

यह कहना सही होगा कि सुरेंद्र शर्मा ने अपने जीवन का अधिकांश समय युवाओं के बीच बिताया और आज भी युवाओं के वे चहेते हैं। जैसे मयंक कवि ने कहा, हम युवा नव युवा हमसे है ये वतन, चेतना की नयी धारा, हम ही से है ये उजियारा, ठीक इसी पंक्तियों को साकार करते सुरेंद्र शर्मा ये जानते हैं कि राष्ट्र का भविष्य युवा मन में ही बसता है। उन्होंने सदैव ही इस चेतना को जगाया, दिशा दी और ऊर्जा दी है।

उनका संदेश सदैव यही रहा; “युवा केवल सपनों का प्रतीक नहीं, संकल्पों का साधक है। जब वह राष्ट्र के लिए जीना सीख लेता है, तब समाज में परिवर्तन अपरिहार्य हो जाता है।” इसलिए ही उनकी बैठकों में सिर्फ संगठनात्मक रणनीतियाँ नहीं बनती रहीं, वहाँ जीवन के अर्थ भी गढ़े जाते हैं। सैकड़ों युवाओं ने उनके मार्गदर्शन में संगठन को जीवन का उद्देश्य बनाया और उनके द्वारा सदैव यही सिखाया गया कि संगठन सिर्फ एक ढांचा नहीं, यह तो वह भाव है जो सबको जोड़ता है, सबको ऊर्जित करता है। आज भी विद्यार्थी परिषद के अनेक पूर्व कार्यकर्ता, जो राजनीति, समाजसेवा, शिक्षा या प्रशासन के विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी हैं, स्वीकार करते हैं कि “सुरेंद्र जी ने हमें बनाया, बनना सिखाया, झुकना सिखाया और देश के लिए जीना सिखाया।”

विपरीतताओं में भी स्थिर

हर साधक की तरह सुरेंद्र शर्मा की राह भी कभी आसान नहीं रही। सामाजिक और संगठनात्मक जीवन में विरोध और अवरोध अनिवार्य हैं। अनेक बार ऐसे अवसर आए जब अनजाने विरोधियों ने रुकावटें डालीं। कुछ अदृश्य शक्तियाँ, जिनका चेहरा कोई नहीं जानता, वे भी सक्रिय रहीं। पर सुरेंद्र जी कभी विचलित नहीं हुए। उन्होंने हर चुनौती को अवसर में बदला और हर आघात को अनुभव में। उनके लिए कठिनाई कोई बाधा नहीं, बल्कि आत्मविकास का साधन रही। वे मानते हैं, “जो संघर्ष से भागता है, वह स्वयं से भागता है। कर्मयोगी का पथ कांटों से ही पुष्पित होता है।” कई बार अवसरों ने उन्हें अनदेखा किया। योग्यता और अनुभव के अनुरूप सम्मान देर से मिला, पर उन्होंने कभी शिकायत नहीं की। उनका विश्वास था कि ‘समय जब देता है, तो सबसे उपयुक्त रूप में देता है।’ आज भाजपा में प्रदेश उपाध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति उसी तप, उसी प्रतीक्षा और उसी निरंतरता का फल है।

सरलता में गहराई, कार्य में करुणा

सुरेंद्र जी के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता उनकी सरलता है। वे जहां भी जाते हैं, वहाँ आत्मीयता का वातावरण स्वतः निर्मित हो जाता है। उनमें कोई औपचारिकता नहीं, कोई बनावट नहीं; वे जैसे हैं, वैसे ही सामने आते हैं। यही कारण है कि कार्यकर्ता से लेकर वरिष्ठ नेता तक, हर कोई उनसे सहज संवाद कर पाता है। उनके लिए राजनीति केवल सत्ता का माध्यम नहीं, समाजसेवा का उपक्रम है। वे कहते भी हैं, “पद नहीं, प्रयोजन महत्वपूर्ण है। यदि पद सेवा को सीमित कर दे तो वह बोझ बन जाता है; यदि वह सेवा को विस्तार दे, तो वरदान बन जाता है।” उनका यह दृष्टिकोण उन्हें भीड़ में अलग बनाता है। वे सुनते हैं, समझते हैं और फिर निर्णय लेते हैं। यही उनकी नेतृत्वशैली है; सामूहिक, सशक्त और संवेदनशील।

“योजक्यः अतिदुर्लभः” वह दुर्लभ संगठक

संस्कृत में कहा गया है, “योजक्यः अतिदुर्लभः”- अर्थात् ऐसा व्यक्ति, जिसमें गुण तो हों ही, साथ ही उन गुणों से उचित कार्य लेने की क्षमता भी हो, वह अत्यंत दुर्लभ होता है। संपूर्ण श्‍लोक कुछ इस तरह से है, अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति, मूलमनौषधम् । अयोग्यः पुरुषो नास्ति, योजकस्तत्र दुर्लभः॥ अर्थ हुआ- इस दुनिया में हर वस्तु, हर व्यक्ति और हर चीज में कोई न कोई गुण या योग्यता होती है। कमी किसी वस्‍तु या व्यक्ति में नहीं होती, बल्कि उसे पहचानकर सही जगह पर उपयोग करने वाले की होती है। एक कुशल व्यक्ति वही है जो हर जगह, हर चीज में निहित गुणों को पहचान सके और उनका सही उपयोग कर सके। कहना होगा कि सुरेंद्र शर्मा इस श्लोक की सजीव व्याख्या हैं।

उनमें संगठन का अनुशासन, नेतृत्व की सूझबूझ, संवाद का सौम्य कौशल, और कार्यकर्ताओं के प्रति करुणा, यह सब एक साथ उपस्थित है। वे जानते हैं कि किससे किस कार्य की अपेक्षा करनी है और कब कौन-सा निर्णय संगठन के हित में होगा। यही संगठनात्मक प्रज्ञा उन्हें विशिष्ट बनाती है।

भाजपा को मिला एक स्थायी बल

आज जब भाजपा मध्य प्रदेश ने उन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष का दायित्व सौंपा है, तो यह केवल एक नियुक्ति नहीं, बल्कि संगठन की आत्मचेतना से निकला हुआ निर्णय है। भाजपा की सफलता का आधार ही उसका संगठन है और संगठन का प्राण है कार्यकर्ता। सुरेंद्र शर्मा इस समग्र भावना के जीवंत प्रतीक हैं। वे जानते हैं कि नेतृत्व का अर्थ आदेश नहीं, प्रेरणा है; पद का अर्थ अधिकार नहीं, उत्तरदायित्व है। उनकी नियुक्ति से भाजपा को निश्चित रूप से नई ऊर्जा मिलेगी। उनकी दृष्टि संगठन की जड़ों में है और उनका मन समाज की नब्ज में। ऐसे व्यक्तित्व दुर्लभ होते हैं जो संगठन को दिशा भी दें और भावना भी।

चरैवेति चरैवेति; निरंतरता का मंत्र

सुरेंद्र शर्मा का जीवन एक निरंतर यात्रा है। उनके पास ठहराव नहीं, केवल गति है। वे मानते हैं कि जीवन का अर्थ ही है आगे बढ़ते रहना। उनका हर कार्य, हर निर्णय इसी भाव को प्रतिध्वनित करता है। वे कहते हैं , “रुकना, थकना या टूटना, यह विकल्प नहीं हैं। जो साधना में लगा है, उसके लिए प्रत्येक क्षण नया प्रस्थान है।” यही “चरैवेति चरैवेति” का वास्तविक अर्थ है और यही उनके जीवन का मार्गदर्शक सूत्र भी। उनके जीवन का हर अध्याय यह कहता है, “यदि समर्पण सच्चा हो, तो समय अवश्य सम्मान देता है।” आज जब भाजपा और समाज दोनों उन्हें एक नये दायित्व में देख रहे हैं, तो यह केवल एक व्यक्ति की उपलब्धि नहीं है, देखा जाए तो उस पथ की मान्यता है जिस पर वे वर्षों से चलते आ रहे हैं।

अंत में यही कि
चरैवेति, चरैवेति, यहि तो मंत्र है अपना
नहीं रूकना, नहीं थकना, सतत चलना सतत चलना
यही तो मंत्र है अपना, शुभंकर मंत्र है अपना

हमारी प्रेरणा भास्कर है जिनका रथ सतत चलता
युगों से कार्यरत है जो सनातन है प्रबल ऊर्जा
गति मेरा धरम है जो, भ्रमण करना, भ्रमण करना
यही तो मंत्र है अपना, शुभंकर मंत्र है अपना…

हमारी प्रेरणा माधव, है जिनके मार्ग पर चलना
सभी हिन्दु सहोदर है, ये जन-जन को सभी कहना
स्मरण उनका करेंगे हम, समय दे अधिक जीवन का
यही तो मंत्र है अपना, शुभंकर मंत्र है अपना…

हमारी प्रेरणा भारत, है भूमि की करे पूजा
सुजल सुफला सदा स्नेहा, यही तो रूप है उसका
जिये माता के कारण हम, करे जीवन सफल अपना
यही तो मंत्र है अपना, शुभंकर मंत्र है अपना…
भारत माता की जय…

डॉ. मयंक चतुर्वेदी
लेखक -वरिष्ठ पत्रकार हैं