विश्लेषण… भाजपा में बढ़ा कई नेताओं का कद, कांग्रेस के सभी नेता धराशायी

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ और दिग्विजय सिंह असफल हो रहे थे, उनकी उम्र राजनीित से सन्यास वाली भी है। ऐसे में पार्टी को युवा नेतृत्व से उम्मीद थी। इसे ध्यान में रखकर जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष और उमंग सिंघार को नेता प्रतिपक्ष की जवाबदारी सौंपी गई थी। ये दोनों नेतृत्व के भरोसे पर खरे नहीं उतरे। न ये संगठन संभाल सके, न चुनाव में कोई करिश्मा कर पाए। इनके नेतृत्व में कांग्रेस के अंदर जैसी भगदड़ मची, वह प्रदेश के इतिहास में कभी नहीं देखी गई। पार्टी के अन्य युवा नेताओं नकुलनाथ, कमलेश्वर पटेल, ओमकार सिंह मरकाम, सिद्धार्थ कुशवाहा, जयवर्धन सिंह और विक्रांत भूरिया से पार्टी नेतृत्व को उम्मीद थी। इन्होंने भी भरोसा तोड़ा। नकुल, कमलेश्वर, सिद्धार्थ और ओमकार चुनाव मैदान में थे, लेकिन जीत नहीं सके। जयवर्धन ने राजगढ़ में अपने पिता दिग्विजय सिंह और विक्रांत भूरिया ने रतलाम में अपने पिता कांतिलाल भूरिया के चुनाव संचालन की कमान संभाली थी। ये दोनों भी असफल रहे। दोनों जगह कांग्रेस के इन दिग्गजों को पराजय का सामना करना पड़ा। सवाल यह है कि अब नेतृत्व आजमाए तो किसे?

प्रदेश कांग्रेस के इस बुरे दौर में पार्टी नेतृत्व की निगाह पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की जोड़ी पर फिर टिक सकती है। 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले चार साल तक इस जोड़ी ने ही कांग्रेस को मजबूत करने के लिए काम किया था। यह बात अलग है कि चुनाव के कुछ समय पहले अचानक कमलनाथ को लाकर अरुण यादव के स्थान पर प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया था। चुनाव मे ं जीत दर्ज कर पंद्रह साल बाद कांग्रेस ने प्रदेश की सत्ता में वापसी की थी। इसका श्रेय कमलनाथ ले गए थे जबकि जीत की असल हकदार अजय- अरुण की जोड़ी थी। इनके नेतृत्व में कांग्रेस ने चार साल तक संघर्ष कर भाजपा सरकार की नाक में दम कर दिया था। कमलनाथ मुख्यमंत्री बने लेकिन सरकार को संभाल कर नहीं रख सके। इस चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। एेसे में पार्टी के अंदर चिंतन- मंथन तय है। ऐसे समय जब पूरे देश में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा है, तब मप्र नेतृत्व ने पार्टी को निराश किया। जीतू पटवारी और उमंग सिंघार को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ। नेतृत्व इन्हें और मौका देता है या तत्काल कोई निर्णय लेता है। यह देखने लायक होगा।