भारतीय सैनिकों की जांबाजी और चतुराई से 16 दिसंबर 1971 को भारत ने पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर किया

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Due to the bravery and cleverness of Indian soldiers, India forced 93 thousand soldiers of Pakistan to kneel on 16 December 1971.

  • 16 दिसंबर शौर्य दिवस पर विशेष
Due to the bravery and cleverness of Indian soldiers

आज हमारा देश ढाका विजय दिवस की 53 वीं सालगार को एक यादगार के रूप में मना रहा है। दुनियां में एकमात्र इस सीधी लड़ाई 1971 में बांग्लादेश की आजादी को लेकर भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच हुई । इस सीधी लड़ाई में भारतीय सेना के नायक जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने पाकिस्तान सेना के प्रमुख जनरल नियाजी ने अपने 93 हजार सैनिकों के साथ आत्म समर्पण किया था।
1969 में सेना प्रमुख सैम हॉरमुसजी फेमजी जमशेदजी मानेकशॉ ने जेएफआर जैकब को पूर्वी कमान प्रमुख बना दिया था। जैकब ने 1971 की लड़ाई में अहम भूमिका निभाते हुए दुश्मनों को रणनीतिक मात दी थी। जैकब के मुताबिक 1971 में पूर्वी पाकिस्तान वर्तमान में बांग्लादेश में युद्ध के बादल मंडरा रहे थे। बेहतर जिन्दगी की तलाश में बांग्लादेश के शरणार्थी लाखों की संख्या में सीमा पार करके देश के पूर्वी हिस्सों में प्रवेश कर रहे थे। पूर्वी पाकिस्तान में लोग इस्लामी कानूनों के लागू होने और उर्दू को बतौर राष्ट्रीय भाषा बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। इसलिए हालात ज्यादा खतरनाक हो गए थे। पाकिस्तानी फौज को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करने वाले जनरल रिटायर्ड जैकब फर्ज रफेल जेएफआर जैकब के मुताबिक भारत के तीखे हमलों से परेशान होकर पाकिस्तान सेना ने संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में युद्ध विराम की पेशकश की जिसे भारतीय सेना ने अपनी चतुराई और पराक्रम से पाकिस्तान के पूर्वी कमान के 93000 सैनिकों के सरेंडर में बदल दिया।

नियाजी के पास ढाका में ही करीब 30 हजार सैनिक थे जबकि भारतीय सैनिकों की संख्या लगभग 3 हजार रही। जैकब के मुताबिक उसके पास कई हफ्तों तक लड़ाई लड़ने की क्षमता थी। अगर नियाजी ने समर्पण करने की बजाय युद्ध लड़ता तो पोलिश रिजॉल्यूशन जिस पर संयुक्त राष्ट्र में बहस हो रही थी वह लागू हो जाता और बांग्लादेश की आजादी का सपना अधूरा रह जाता। लेकिन वह समर्पण के लिए तैयार हो गया।

मुक्ति वाहिनी को दी मदद

पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश बनाने में सबसे अहम भूमिका मुक्ति वाहिनी की रही। मुक्ति वाहिनी ने बांग्लादेश की आजादी के आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। भारत में पूर्वी पाकिस्तान से लगातार आ रहे शरणार्थियों की समस्या से निपटने के लिए भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को मजबूत करने का निर्णय लिया। इस फैसले के तहत मुक्ति वाहिनी को हथियार दिए गए।

अमेरिका और रूस के कूदने से पहले ही पाक का सरेंडर

इससे पहले कि दो परमाणु ताकत संपन्न राष्ट्र किसी जंग में उलझते पाकिस्तान की पूर्वी विंग ने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके साथ ही युद्ध खत्म हो गया और बांग्लादेश का उदय हुआ। हार से तिलमिलाए नियाजी ने कहा जैकब ने मुझे ब्लैकमेल किया हार से तिलमिलाए पाकिस्तान ने कुछ हफ्तों बाद चीफ जस्टिस हमीदुर रहमान को युद्ध जांच आयोग का प्रमुख बनाकर हार की वजह का पता लगाने का काम सौंपा गया। कमीशन ने जनरल नियाजी को तलब कर पूछा कि जब ढाका में उनके पास 26400 जवान थे तब उन्होंने ऐसे शर्मनाक तरीके से क्यों समर्पण किया जबकि वहां पर सिर्फ कुछ हजार ही भारतीय फौज थी। जनरल नियाजी ने जवाब दियाए मुझे ऐसा करने पर मजबूर होना पड़ा।

भारत की रणनीति

जेएफआर जैकब के मुताबिक 1971 की लड़ाई में पश्चिमी मोर्चे पर रक्षात्मक.आक्रामक और पूर्वी मोर्चे पर पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की बेहद आक्रामक रणनीति बनी थी। बारिश रुकने तक बांग्लादेश पर हमला न करने की बात जनरल जैकब ने कही थी। इस बीच जनरल ने युद्ध की सारी तैयारियां पूरी कर लीं। और जब युद्ध शुरू हुआ तो जनरल जैकब ने खुलना और चटगांव पर हमला बोलने के आदेश को नजर अंदाज करते हुए ढाका पर फोकस करना उचित समझा। जैकब जब ढाका के पास पहुंचे तो उनके पास 3 हजार जवानों की फौज थी जबकि नियाजी के पास करीब 30 हजार फौजी थे। लेकिन नियाजी जानता था कि बंगाली लोग उसके खिलाफ हैं। नियाजी ने संयुक्त राष्ट्र के नियमों के तहत युद्ध विराम समझौता करने की पेशकश कर दी। 16 दिसंबर को जैकब बिल्कुल निहत्थे हाथों में सिर्फ सरेंडर के कागज लेकर नियाजी के हेडक्वॉर्टर पहुंच गए। सरेंडर के कागज जैकब ने खुद ड्राफ्ट किए थे लेकिन इस पर आलाकमान से मंजूरी नहीं मिली थी। इस बीच राजधानी में मुक्ति वाहिनी और पाकिस्तानी सेना के बीच युद्ध जारी था।

भारत की ओर से पूर्वी कमान का नेतृत्व कर रहे जेएफआर जैकब ने नियाजी से कहा मैं आपको भरोसा दिलाता हॅूं कि आप अगर जनता के बीच आत्मसमर्पण करना चाहते हैं तो हम आपकी और आपके फौजियों की सुरक्षा की गारंटी लेते हैं। जैकब याद करते हैं नियाजी लगातार बात करता रहा और आखिर में मैंने कहा नियाजी मैं तुम्हें इससे बेहतर डील नहीं दे सकता हूं। मैं तुम्हें 3० मिनट देता हूं। अगर तुम कोई फैसला नहीं कर पाए तो मैं हमले का आदेश दे दूंगा। बाद में नियाजी के दफ्तर से जैकब लौट आए। उस समय की घटना के संबंध में जैकब बताते है कि वे नियाजी के पास दोबारा पहुंचे और उन्होंने मेज पर सरेंडर के कागजात रखे हुए थे। मैंने पूछा जनरल क्या आप इसे मंजूर करते हैं मैंने नियाजी से तीन बार पूछा। लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया। इसके बाद पाकिस्तान सेना ने सरेंडर कर दिया। 93000 सैनिकों का सरेंडर 1971 की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना भारतीय फौजों के सामने सिर्फ 13 दिन ही टिक सकी। इतिहास की सबसे कम दिनों तक चलने वाली लड़ाइयों में से एक इस लड़ाई के बाद पाकिस्तान के करीब 93 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। आधुनिक सैन्य काल में इस पैमाने पर किसी फौज के आत्मसमर्पण का यह पहला मामला था।

लेखक -जवाहर प्रजापति
प्रदेश सह मीडिया प्रभारी भाजपा मध्यप्रदेश